A little Sunshine   (उष्नीষ)
53 Followers · 14 Following

read more
Joined 16 June 2019


read more
Joined 16 June 2019
24 JUN 2023 AT 23:12

हरफों की उलझनों की दास्तान भला किससे कहें ?
बातों का सिलसिला रुकता नहीं, किस्से हजार बनते चले जा रहे हैं।

चंद लम्हों में सिमटते हुए जज़्बातों के आलम से जाकर पूछें -
दिलों की पर्त से उड़कर जो उनके दामन में गुम हुए जा रहे हैं

जश्ने गुलशन में भी उनका जिक्र करे, या के ना करें -
उम्र भर के तानों से ही रूह बांधकर, मुस्तकीम सजाए जा रहे हैं ।

वफ़ा के सदके करे, या एहसानो का सिला मानकर चलें -
उनकी नाराज़ नजरों से ही राह गुजरे, उन्हीं पर थमें जा रहे हैं।

वक्त के हसीन सितम की कैफियत भला किसको बयां करें।
न पूछा दिल का हाल किसी ने ,मशवरे बेशुमार मिले जा रहे हैं।

-


28 MAY 2023 AT 0:25

ज़रा इश्क़ की रह गुज़र के मुसाफ़िरों से मिलता चलूं,
अपने पुराने ज़ख़्म की टीस को भुला बैठा हूं।

ख़ाक हुए मंजरों की ता'बीरात भी बाक़ी रह गई,
क्या कहूं किस-किस को वजह-ए-रंजिश बना रक्खा हूं।

रहगीर मिले कई, रोने से भी कतराने वाले,
उनका ग़म समेट कर मैं खुद से ही गिला कर बैठा हूं।

बरसों से सूखे आंसुओं को मेरी, तदबीर भी न नसीब हुई कोई,
अब शिकस्ता ख़्वाबों के मर्तूब आंचल से पलकें भीगा लेता हूं।

जज़्बातों के सैलाब के कहर से क़ल्ब का आसमान वीरां लगे,
अब तो कुर्बत से फासला, मुफ़ारक़त से फ़रेफ़्ता सज़ा रक्खा हूं।

इस दर्द के हमदर्द कई मिले मुझे, कोई रोने वाले,कोई समझाने वाले,
मेरी राह-ए-हयात की तहरीर ग़लत, शख्सियत भी अपनी मैं मिटा आया हूं।

-


19 MAY 2022 AT 0:50

कल रात नींद में था मैं शायद।
लगा कोई आकर मुझसे लिपट कर सो रहा था।
मेरे हाथ बेसुध से उसके बालों को सहला रहे थे।
और मैं,एक पहचानी सी खुशबू के आगोश में गुम था।
सर को उसके धीरे से चूमा था मैने,
जैसे जिंदगी मेरे दायरे में आ सिमटी थी।
चारों तरफ घना सन्नाटा छाया हुआ था।
बस खुशियों से इतराती मेरी धड़कने सुनाई दे रही थी।
कई बार नब्ज़ टटोल कर देखा था मैने,
मेरी नब्ज़ हमेशा सी तब भी तड़प रही थी।
जानकर सुकून मिला दिल को ,
कि चलो थोड़ी जान तो अब भी बाकी है।
नींद में था मैं बेशक,
सच ही होगा शायद।
या, कोई ख्वाब था ?
नब्ज़ तो बता रही थी कि सच था।
क्या पता!

कल रात नींद में था मैं शायद।

-


23 MAR 2022 AT 19:48

लोगों की भीड़ में चुपचाप शामिल हो जाता हूं,
मैं तक़दीर मान कर अकेलेपन की सजा काटता हूं।

एक अरसा हुआ दोस्तों के साथ ठहाके लगाए हुए,
मैं गुमनाम शहर की गली में खुद को खड़ा पाता हूं।

हवा के झोंके सा बह जाता है यादों का काफिला,
मैं हवा में अपनी मिट्टी की महक ढूंढता रह जाता हूं।

कितने शादाब थे तेरे साथ बिताए वो लम्हे,
मैं आज खुद की परछाईं से भी घबरा जाता हूं।

भूख लगती है तो एहसास होता है की जिंदा हूं,
मां तेरे हाथ की बनी रोटी के लिए तरस जाता हूं।

शहर मेरा मेरे बाद भी खुशियां बांट रहा होगा शायद,
मैं पराए शहर के सहर में भी अंधेरा चुनता हूं।

क्या पता फिर कब नसीब की इनायत होगी,
मैं जर्रा जर्रा बिखरता हूं, कतरा कतरा टूट जाता हूं।

-


22 MAR 2022 AT 21:02

तुझको पाने पर भी जब खोने का गुमां होने लगे,
दिल को कैसे मैं इजाज़त दूं कि वो मुस्कुराने लगे।

नादान ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त वो हर लम्हा सजाता रहे,
मगर तुझसे मिलने पर खुद का निशां भूल जाने लगे।

बदन पे ओढ़ रखा है चादर सा तेरे अल्फाज़ो को,
तेरी महक जो मिले नासमझ सांस लेना भूल जाने लगे।

ना कभी सोच सका जिंदगी तुम्हारे बिना,
तेरे लौट के जाने से सुकून आंखों पर अब उधार सा लगे।

कभी बेख़्याली में तक़दीर से गिला जो किया करते हैं,
मैं गुमशुदा अब तेरी राहों में, तू नामुमकिन तक़दीर सा लगे।

-


22 MAR 2022 AT 0:20

तुम्हें ज़्यादा देर तलक देखने से आंखों को डर लगता है।
के तेरे जाने के बाद इन पलकों को झपकाऊं कैसे ?
आंखों में तेरी तस्वीर लिए जिंदा होने के वहम से,
सांसें तो चलती हैं बेफिक्र, लेकिन मैं जिंदगी बिताऊं कैसे ?

खब्बों के मलाल से उदासियों में कहानियां हैं कई,
इस मुयस्सर ज़िंदगी को लापरवाहियाॅं सिखाऊं कैसे ?
हिज्र से धड़कन के मरासिम का मुश्क घुला है हवा में,
मैं खो भी जाऊं लेकिन इन सांसों को छुपाऊं कैसे ?

न मुसलसल शिकायतें है न ही नाराज़गी कोई,
मैं अपनी ग़ैर निग़ाहों से खुद को बचाऊं कैसे ?
कई ज़ख्म समेटे हैं गहरे, और हैं निशानियां कई,
एक एक कर उन्हे भूल भी जाऊं तो जाऊं कैसे ?

ज़र्रा ज़र्रा बिखरता है रूह से हादसों का लहू,
दर्द दरकिनार कर तेरी मुस्कान को पास बुलाऊं कैसे ?
कभी जो वक्त से मोहलत की इजाज़त मांगी,
उसने उजरत का हिसाब किया मैं रंज भुलाऊं कैसे ?

तेरे शहर में ठिकाना तक न मयस्सर हो सका,
जो रूठी शाम का किस्सा था तुझे सुनाऊं कैसे ?
सफ़र हयात पर तेरा हमसफ़र बनकर साथ चलना,
ये वहम अकारत है, ये इस दिल को समझाऊं कैसे ?

-


12 JAN 2022 AT 23:11

पिघलते ख्वाबों के साथ, आंखों ने रात जागी होगी।
थकी आंखों ने देखा नही होगा, शायद सुबह धूप भी खिली होगी।

-


5 DEC 2021 AT 18:49

यादों की चांदनी कुछ यूं बिखरी है,
रात को भी आज अंधेरे की कमी है।
नम आंखों से दिल भी है भीग रहा,
बाहर देखा तो बारिश भी थमी है।

कुछ अरमान बाक़ी रह गए हैं,
उनके सवालों में उलझ से गए हैं।
आरज़ू की जब बात है उठती,
मेरे हक़ का ही वो मखौल बनाते हैं।

गमों का खज़ाना तो मेरे हिस्से रहा,
वो अपनी खुशी का जश्न मनाते हैं।
लम्हे दो चार जो जिए थे उधार के,
हम आज उन्हीं का उंस समेटते हैं।

-


10 NOV 2021 AT 21:37

थोड़ी सी ज़िंदगी,
छुपा रखी है माजी के गुजरे लम्हों तले।
कभी शाम की दस्तक पर,
जहां मद्धिम मद्धिम यादों का बाज़ार चले।

किस्सों का मजमा,
सजा है जैसे धुंध की आड़ लिए।
सदियों से जहां,
अश्कों का कारवाॅं बेपरवाह चले।

झीने महीन धागों से बना,
तिनका तिनका समेट ख्वाबों का आस्तीन।
रंगरेज के इंतज़ार में,
बेरंग बहार के टूटते दिन गिनते चले।

आह है दबी हुई,
क़ल्ब की राहत है ना ही सांसों का सुकून।
बदन का झूठा जमा पहन,
नफ़स मुस्तक़ीम पर तार तार चले।

कल जो पूछा,
गुनाहों की फेहरिस्त से,
के बता कौन सी खता सजा रखी है सबसे आगे ?
उसने हंस कर कहा,
गुनाहों का हिसाब मुझसे न पूछ,
तेरी मोहब्बत के सितम से तेरे गुनाह भी रुसवा हो चले।

-


21 JUL 2021 AT 23:52

आपकी रूखसती से आंखों के स्याह काजल बादलों से बातें करते,
और बरसात में भीगी आंखों पर कभी अश्क़ नही ठहरा करते।

ग़र नुमाइश जो हो कभी सितम दीदार-ए-यार का,
दिल की परवाज़ का सिरा बेगैरती से हम न दिखाया करते।

चले जाओ अगर जाना है तो महफिल से ए बेदर्द सनम,
हम बेरुखी के मुंतसिर, आपके ऐब न दिल से लगाया करते।

किस्सा वक्त का दरकिनार कर कभी वफाओं का सबब लीजिए,
हम आपके कदमों की आहट तक को दुआवों से नवाज़ा करते।

कभी जो याद आए तो एकबार पलकें बंद कर देखिएगा,
हम गुमनाम ही सही पर आपके दिल में ही रहा करते।

-


Fetching A little Sunshine Quotes