मीर पढ़ा, मीरा पढ़ी, पढ़े गणित विज्ञान,
बढ़े बढ़े पोथे पढ़े, कुछ भी सच मत जान!!-
क्या लिखूं?
उसे खात लिखूं?
या लिखूं शिकायतें?
क्या लिखूं?
लिखूं मेरे लंबे दिन के बारे में?
या लिखूं अकेली शामों की कहानी?
क्या लिखूं?
बताऊं चाय की ठंडी प्याली की बातें?
या लिखूं गीत चिड़ियों की ज़ुबानी?
क्या लिखूं?
लिखूं धुंधली यादों के बारे में?
या लिखूं उसकी मुस्कुराहटें?
आखिर उसे खात लिखूं?
तो, क्या लिखूं?-
Usne poocha - khush ho?
Mene muskura diya...
Vo chala gya...
Us aansu ko dekhe bina
Jo chhalkne k intezar me
Is unchi imarat ki
Khidkiyo ki munder par
Atmhatya ko atur
Adhlatka tha...!!
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ईश्वर करे तू बहुत महंगा बिके उस बाजार में जिसमें तेरी मां तुझे बेचना चाहती है,
पर तुझे प्यार, साथ, शांति और सुकून कभी ना मिले,
जीवन भर भटकाव मिले,
अकेलापन मिले,
घबराहट मिले,
तड़फ मिले,
कभी ना समझने वाले लोगो का हुजूम मिले
और मेरे साथ जो किया तूने उसके लिए तू खून के आंसू रोये
लाखो करोड़ो जन्मो तक पर ईश्वर से कभी माफ़ी ना मिले
इसी दुआ के साथ आज तुझे आजाद करती हूं-
बहस लंबी चली
उनके सही मेरे गलत की
फैसला सुनाने वाले ने
फिर
अगली तारीख दे दी
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हम भी वहीं थे,
जब उसे जलाया जा रहा था,
बलिदान के नाम पर,
होलिका बनाया जा रहा था,
चीखती रहीं लपटें,
ऊंची गगन छूती आवाजों में,
जब उस मौत के तमाशे का,
'स्लो मोशन वीडियो' बनाया जा रहा था...
हम भी वहीं थे,
जब उसके साथ राख हो रहे थे,
नज़र , उतारे, जादू टोने ,
के तिल, नारियल और राई दाने,
कितनो का भला कर गई,
वो होलीका क्या जाने।-
Uske diye jhumko me vo ladhki hmesha dp me dekhi mene...
Usne ek jodi mujhe bhi diye tohfe me
Aur shikayat ki thi k mene pehne ni...
Bina ye pooche k mujhe jhumke chahiye ya nhi...Pasand ni janni chahi usne...bas uski pichli wali ko pasand the to mujhe bhi la diye...
Magar
Mujhe to payale pasand thi...aur ab intezar hai uske samajhne ka...meri payalo ka...
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अपनी जिंदगी में 'पूनम' की चाह में
किसी और की जिंदगी 'अमावस' कर देना
अपनी जिंदगी में 'अपराजित' रहने के लिए
किसी और को 'पराजित' कर देना
अपनी जिंदगी में 'खुशियों' की आस में
किसी और की जिंदगी 'दुखों' से भर देना
अपनी जिंदगी में 'अपनेपन' की तलाश में
किसी और को 'अकेला' कर देना
अपनी जिंदगी में 'फूल खिलाने' के लिए
किसी और का बगीचा 'वीरान' कर देना
इसे प्रेम कैसे कह सकते हो तुम?
यह तो सरासर लूट हुई-
न जाने वो कब मेरा घर हो गया
उसके जाते ही सब खंडहर हो गया
वो जो कभी चंद घड़ियों का मालिक था
अब यादों के दिन के आठों पहर हो गया
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