लिख तो दू मगर पढ़ पाओगे क्या? मेरी बेमकसद सी जिंदगी को समझ पाओगे क्या? मैं तो बेपरवाह लम्हा हूँ जो देखोगे भी कहीं मुझे, तो पहचान पाओगे क्या? अभय चतुर्वेदी (बेबाक मुसाफ़िर)
जहाँ कोई बंदिशें नहीं होती, कोई शिकायतें नहीं होती. होती हैं ख्वाहिशें साथ की, दिलों की दूरी नहीं होती. प्यार वो शहर है, जहाँ दिल तोड़ कर जाने वाली... दिलों में हसरतें नहीं होती. अभय चतुर्वेदी (बेबाक मुसाफ़िर)
हर रात मुलाकात होती है, कुछ न कुछ हर बार बात होती है... मेरी और चाँद की कहानी न जाने क्यों एक सी लगती है... बातें हमारी सब करते हैं... मगर साथ चलने की ख्वाहिश किसी की नहीं होती है
भरी महफिल हो, या अकेले में गुज़रती शाम, दिल अक़्सर अकेला रहता है. न कोई साथ चलने वाला, न हाथो में किसी का हाथ, जब चलता है.....!! तो हर सफर पर दिल अकेला होता है ..
पल भर की सारी कहानी है, आते जाते लम्हों की बस इतनी सी रवानी है, कौन जाने कौन सा साथ, कौन सी बात आखिरी बन जानी है. जो बीत गया वो कल, जो आयेगा वो भी कल, जो है सिर्फ वो साथ है , और वो ही हमारे होने की निशानी है.
मगर छोड़ो...!!! लिख दूँ जो कुछ तेरे नाम का तो बस एक हादसा समझना, और आ जाऊँ जो तेरे शहर कभी तो उसे प्यार नहीं.. मेरा भटका रास्ता समझना.. (बेबाक मुसाफ़िर) एक मुसाफ़िर रात की गलियों का..... #3:30_thought
आओ एक रस्म मोहब्बत की पुरी कर लेते हैं, तुम एक बार आकर मिलो पुरी उम्र के लिए तुम्हें हम अपने साथ रोक लेते हैं... ये आते जाते मौसम कभी सावन तो कभी पतझड़ भी लाएंगे, जो बदले उसे बदलने दो मेरे यार....!! आओ थाम कर हाथ ये लम्हा अपने दरमियाँ आज रोक लेते हैं.