मुझे एहसास हो जाता है, हर मिलने वाले साथी का अंधे को जब आंख मिली ,साथ छोड़ा उसने लाठी का रिश्तों से मैं दूर रहा, 'अंकित' इल्म मुझे हर रिश्ते का एक वक्त के बाद छूट ही जाता है साथ,दिया से बाती का
तमाम है ख़रीददार, मगर ये दिल पहले से ही बिका है जब भी देखा ख़ुद को, मेरे आईने में सिर्फ़ तू ही दिखा है और एक बात गौर से सुन,मुझे शायर बनाने वाले मैंने ख़ुद को कभी लिखा ही नहीं,हमेशा तुझको ही लिखा है
कोई मिला है 'अंकित',जो अपना कहता है हर वक्त मेरा ख्याल ,उसके ज़हन में रहता है शिकायते तमाम है उसे, मुझसे मगर जाने क्यों हर दुआ में,उसकी आंखों से मेरे लिए अश्क बहता है
वो जो ख़्वाब संजोए थे तेरे संग,सब टूट चुके है जो अपने थे मेरे, वो सब मुझसे रूठ चुके है बे आबरू हुए हम भी,अब इस मोहब्बत में 'अंकित' अब तो मुझे यहां,तमाम लोग लूट चुके है