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वाहि वात यतः कान्तातां स्पृष्टवा माम अपि स्पृश।
त्वयि मे गात्र संस्पर्शश्चन्द्रे दृष्टि सम... read more
त्वयि मे गात्र संस्पर्शश्चन्द्रे दृष्टि सम... read more
Joined 2 April 2020
6 JUL AT 19:33
जाने क्यों उदास हो रहा हूँ मैं?
क्यों ग़म का ख़ास हो रहा हूँ मैं?
सुबह का सूरज नाराज़ हो रहा है,
क्यों अंधेरे के पास हो रहा हूँ मैं?
क्यों मुझे ग़ज़ल लिखनी है?
क्यों स्याह-साज़ हो रहा हूँ मैं?
एक कसक जलाने पर तुली है!
और सूखा कपास हो रहा हूँ मैं,
न जाने क्योंकर ही ओढ़ोगे तुम,
जाने क्यों लिबास हो रहा हूँ मैं,
मेरी रंगत तुम्हारी लौ लिए है,
तुम्हारे आँगन का पलाश हो रहा हूँ मैं,
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21 MAR AT 23:14
ईश्वर
अगर फ़िर कभी लिखना हो
तो सबकुछ मत लिखना
बस सुनना बच्चों के द्वारा की गई प्रार्थना
और भर देना दुनिया को उन सभी ख्वाहिशों से
अगली बार एक कविता लिखना
दुनिया को उस एक कविता की
ज़रूरत सबसे ज्यादा है
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