किस बात का गम करें कि जी रहे हैं अकेले ?
इक ख़ुशी है कि एक रोज़ मर जाना है अकेले-
Dil ki saari baaten panno par likh deta hun.....
दिवाली खुशियों का त्यौहार है। हर कोई इनका बेसब्री से इंतजार करता है। पटाखे फौरना, अपने पिता, भाई के साथ हुका-पाति खेलना ।घर मे बने माँ के हाथो का पकवान खाना। मगर देखते हि देखते ये सब चीजे एक समय के लिए आपसे दूर होते चली जाती है। ये मेरे जीवन का दूसरा दिवाली है जिसमें मैं चाहते हुए भी घर नहीं जा सका । मुझे नहीं पता ऐसा क्यूँ हो रहा है लेकिन कहीं ना कहीं मैं खुद को समय कि डोरियो से बंधा हुआ पाता हूँ। अगर रूपया आपके जिन्दगी को संवारती है तो वो आपके खुशियों का संहार करती है। एक मन को तो कहता है चलो कोई नहीं, होता है और भी बहुत से लोग है तुम्हारे जैसे मगर यही वो पल होता है जिस समय हमें अपने परिवार, अपने घर कि सबसे ज्यादा याद आती है। खैर............!
आप सभी को दिपावली कि बहुत बहुत शुभकामनाएं...
प्रभु श्रीराम हम सबके जीवन मे खुशियाँ लाए।🪔🙏
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तेरे जाने के बाद
हर एक शौक पाल रखा हूँ,
बदलते लोगों में खुद का नाम
शुमार कर चुका हूँ।
हो रहा था बर्बाद जिस तरह मैं
अब तो फकत तेरी यादों को भी
जेहन से तबाह कर चुका हूँ।
संकोच क्या करना ये कहते हुए कि
खुश रहने वालों से जलता हूँ मैं
जगह जगह जो तेरे नाम कि
महफिलें सजी है
आलम ये रहा कि तेरे जाने के बाद
अब बहुत कम घर से निकलता हूँ मैं-
गुजर रही जिन्दगी जिस तरह
ये मेरे जीने का ढंग नहीं,
आशा,निराशा,उम्मीद,बे-उम्मिदे
सब बेकार गए
मुझ से तो मेरे ही गम उठाए ना गए।
जिस गली से वास्ता था मेरा
वहाँ मेरी चली ही नहीं
दिलेमुहल्ले में बसाया था जिसे
अब तो वहाँ का मैं मुसाफिर भी नहीं
अब वो शहर क्या,वो गली क्या
अब तो वहाँ जाने का जी भी नहीं
जो शौक मेरे थे ही नहीं
जो जिन्दगी मेरी थी ही नहीं
उसे जीना
हाय सब बेकार गए......।
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सूखा हुआ है दरिया
किसी ने कंकर फेका है
सन्नाटा पड़ा है अंदर
एक आवाज़ गूंजा है....
लगता है,
तेरी यादों का रुखसत हुआ है
आज फिर
मेरे दुःखो मे इजाफा हुआ है,
संभालता हूँ खुद को
संभल नहीं पाता हूँ
इतनी दूरिया के बाबजूद खुद को
तुझसे दूर नहीं कर पाता हूँ
गांव बदले,शहर बदला
बदल डाले सारे ख्वाइशों को
फिर भी ना जाने क्यूँ
फंसा पाता हूँ दलदल मे.....-