🅽🅸🆂🅷🅰🅽🆃 🅿🅰🅽🅳🅴🆈   (✍ℕ𝕚𝕤͢͢͢𝕙𝕒𝕟𝕥 ℙ𝕒𝕟𝕕𝕖𝕪.)
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Joined 4 December 2019


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यूँ तो हम पर तुम्हारी चाहत का ईल्जाम ना होता
दिल ना - उम्मीद तो नहीं इस प्यार में नाकम ना होता
जरा लम्बी हैं ये गम की शाम ,वरना इस कदर कोई बेमान ना होता
बस यही की ,हम पर तुम्हारी चाहत का ईल्जाम ना होता


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दवा दर्द केे ऊपर लेटी है
थकान में सुकून बेटी हैं

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ये उलझन दिल से सुलझाई जाती नहीं
इक मीठी सी सिसक है दिल में
जो आप से छुपाई जाती नही
रब ही जाने प्यार है या रूसवाई
वरना मुँह फेर केे ऐसे जाता नहीं कोई

ये उलझन दिल से सुलझाई जाती नहीं
क्यू आपके बिन जिन्दगी की कल्पना बनाई जाती नहीं
इस टूटे दिल की आवाज़
तुमको सुनाई जाती नहीं
चैन -ऐ -रूह को पाई जाती नहीं
तुम बिन कोई अरमान सजाई जाती नहीं
इस कदर ये उलझने हैं की चाह कर भी बताई जाती नहीं


अब साथ जीने मरने वाले क़समे खाई जाती नहीं
किसी और केे साथ - साथ निभाई जाती नहीं
किस कदर जी लेते हैं लोग अपनो से दूर होकर
इसी कस्मकस में मुझ से ये उलझन सुलझाई जाती नहीं




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क्या कहे तुझ से की तू इतनी क्यूट हैं
की तेरे आगे ,हम बिल्कुल म्यूट है
तेरी आँखिया में वो जादू है
की हम हो जाते बेकाबू हैं
तेरी कजरारे नैनो से
घायल तू कर जाती है
बस फिर होठो पे मुस्कान सजा केे
सबके होश उडाती है
कड़े सुनहरी धुप में
जब अपने जुल्फे लहराती है
लहराती जुल्फे फिर तुझको खूब सजाती हैं
शाम ढले जब चाँद आये
तुझे देख वो भी शरमाये
तुम्हे देखकर ही मेरी बस रात यूँ ही कट जाती हैं
दीवाने की आँखों से ,बस नींद चुरा ले जाती है
बस नींद चुरा ले जाती है .!

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आज वो शाम है जिस शाम मेरी सारी ख्वाहिशें हक़ीक़त होने आयी है,कानो में झुमका पाँव में पायल वो सादगी से श्रृंगार किये बनारस घाट पे मिलने आई है❣️

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नजरो केे खेल कुछ यूँ खेल गये
जिससे करनी थी जी भर बातें
वो ही नजरे फेर गये

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मैं तेरे इश्क़ को मजबूर होना चाहता हूँ !
हर जन्म में "जमशेदपुर" होना चाहता हूँ !

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I need feminism because
i belive in equality
I need feminism because
i belive in women empowerment
I need feminism because
i belive in sexism in the society
I need feminism because
i belive in glass ceiling
I need feminism because
it's my fault ,if a man rapes me
I need feminism because
i think i can't do that man can do
I need feminism because
i belive in feminist
I need feminism because
i belive in equality .
I need feminism because
i need gender equality.

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आजादी का ये बिगुल
ना घर बैठे बज पाया था
इस सुर को कर्णपटल पर
कितनो ने स्वपन सजाया था
कितनो ने जान गवाया था
मातृी भूमि की रक्षा केे खातीर
कितनो ने लाल गवाया था
आजादी का ये बिगुल
ना घर बैठे बज पाया था
जहाँ भगत और आजाद ने है जन्म लिया
मातृी भूमि की सेवा खातिर
अपना सब कुछ छोड़ दिया
नमन है उन विरो को जिनोहने
आजादी दिलवाई है


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