ना पूछो हाल-ए-दिल !
ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
मंज़िलों से रूबरू ना हुआ मैं कभी !
मुसाफिर हूँ और बस सफर करता हूँ !!
ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
ना सोचो मिरे बारे मे तुम मियां इतना !
मैं दिमाग पे असर करता हूँ !!
ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
ठोकरों से सीखा है सलीका जीने का मैंने !
कुछ यूं ही हर बात पे खुदको खबर करता हूँ !!
ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
नही ताल्लुक ज़िंदगी से अच्छे मेरे !
फकत इसीलिए मौत पे जां-निसार करता हूँ !!
मुझे मुआफ़ करो ! ना पूछो किस तरह ज़िंदगी बसर करता हूँ ?
है एक सवाल खुदसे भी मुझको "रुहान" !
हूँ नही काबिल जब मैं ? फिर किस तरह मैं ज़िंदगी बसर करता हूँ ??-
है बात सारी नूर की नूर !!
शामें भी ढल जाती हैं.....
देख कर चाँद का नूर !!-
ऐब ही ऐब हैं हर शख्स मे "रुहान" !!
एक रोज़ हम सबसे किनारा कर जाएंगे....
झूठी तसलियाँ फरेबी इरादे !!
ऐसे ही चलता रहा तो हम सच कहना भूल जाएंगे....
सफर मे हमसफ़र होना जरूरी नही !!
ये बात हम सफर मुक्कमल होने पर बताएंगे....
वक़्त पे वक़्त का भी इख्तियार नही !!
"सनम" नाजाने हम कँहा बिछड़ जाएंगे....
कुछ ग़ज़लें लिखी हैं !!
मौका मिला तो सुना कर जरूर जाएंगे......
ना रहा ऐतबार ज़िंदगी पे भी अब !!
के एक दोस्त ने कहा है
"एक रोज़ हम सब मर जाएंगे".....
"एक रोज़ हम सब मर जाएंगे".....-
वो शौकीन है बंजर ज़मी की !!
कुछ भी हो मैं अब बादल नही बनूँगा....
दरिया भी दरिया ना बन पायेगा !!
मैं ना अब किनारा बनूँगा....
डूबती है कश्ती तो डूब जाए !!
मैं अब साहिल नही बनूँगा....
आफताब पे देती है जान वो !!
कुछ भी हो ! मैं अब पेड़ की छावं नही बनूँगा....
समझते नही आदमी को आदमी तुम "रुहान" !!
लग गए जिस दिन गले मौत के !
ना मैं भी फिर कभी आदमी बनूँगा....
एक आस मे गुज़री ज़िन्दगी ये "तुम पुकारोगे" !!
कुछ भी हो मैं अब पलट कर नही देखूंगा....
ना हो दीदार चाहे चाँद का !! हो कुछ भी !!
फकत मैं ढलती शाम नही बनूँगा....
नही रही कदर पानी की !!
"रुहान" मुआफ़ करना मैं अब बरसात नही बनूँगा....
वो शौकीन है बंजर ज़मी की !!
कुछ भी हो मैं अब बादल नही बनूँगा....-
बिछड़ा मै उससे ! इस बात पे !!
वो मुझसे एक वक्त से खफा है....
नाजाने किस-किस के गले लग कर रोयी वो !!
फकत मेरे बिछड़ने पर !
मुरशद ! बताओ ये भी क्या कोई वफ़ा है ??....
!!!!-
गैरो पे ऐतबार होने लगा है....
अ शख्स ! शायद तू अपनो को खोने लगा है....-
इक झलक देखेगा....
फिर उम्र भर सोचेगा....
तेरा दीदार करने वाला !!
हर सूरत मे तेरी सूरत ढूंढेगा....
कभी ग़ज़ल कभी नज़्म तो कभी गीत !!
तेरे ऊपर ना जाने क्या-क्या लिखेगा....
एक बात ये है भी है !!
जो तुमको देखेगा बस फिर कँहा कुछ देखेगा....
तुम क्यों देखोगी ढलते सूरज को !!
ढलता सूरज तुम्हारी झुकती पलकों को देखेगा....
देख तुम्हारी अदा को "जाना" !!
अदाकार भी एक पल को सोचेगा....
ना देखे जो नज़र भरके ताजमहल को भी !!
वो "रुहान" भी तुमको पलट के देखेगा....
तुम क्यों देखोगी "चाँद" को ??
मिरी जां तुमको चाँद देखेगा....
तुम क्यों देखोगी "चाँद" को ??
मिरी जां तुमको चाँद देखेगा....-
वाकिफ हैं तुम्हारे वायदों से हम....
कच्ची उम्र है तज़ुर्बे नही "रुहान"....-
आँसुओ ने लफ़्ज़ों का किरदार निभाया है....
बुरे हालातों मे !!
जबाँ ने कँहा ही किसी का साथ निभाया है....
हाथ भी थर-थराने लगे !!
हाए क्या खूब मंज़र आया है....
मुझको मुआफ़ करना ! कुछ भी तो अब हो नही सकता !
अब वक्त बदलने को आया है....
दास्तां खत्म होने को आई है !
लहरों ने वापस जाने का मन बनाया है....
शांति मे शोर सुनाई देता है !
पहली बार चाँद रात से घबराया है.....
हाए कितना बदसूरत लिखता हूँ मैं !
चलो छोड़ो ! इस कलम को कँहा ही लिखना आया है....
मुस्कान भी झुठी उम्मीद भी टूटी !
चलो छोड़ो ! चलते हैं अब आखरी वक़्त आया है.....
अल्लाह खैर करे !
ए लोगों ! तुम्हारे कर्मो का फल आया है....-