तुम क्या जानो
टूटे मन की आहत तुम क्या जानो
तुम हुस्न और वस्ल की ख्वाहिश रखने वाले
राधा का प्रेम और मीरा की चाहत तुम क्या जानो
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अनदेखी मंज़िल की तलाश
अपने पास बुला लो मुझे
थोडा खास बना लो ना मुझे
मोहलत दो ज़रा चाहत निभाने की
तब तलक सुकून-ए-दिल का एहसास बना लो मुझे-
रात थी अन्धेरा था आँखे बंद थी पर सो नही पाया
खोल कर दिल अपना कभी कुछ बोल भी नही पाया
बहुत कुछ था अंदर जो आतुर था नम आँखो से बाहर आने को
पर लड़का था साहब इसलिये ज़माने के सामने रो भी नही पाया-
लबो से पहले माथे को चूम जाता है
कमियाँ सारी छुपाकर इलाही मुझे बनाता है
यूँ तो बहुत सी आँखे है जिस्म से गुजरती हुई
वो खास है जो बिन छुए रूह मे उतर जाता है-
सवेरे ने आ कर घने कोहरे को समेटा है
धरती ने फूलो की ओढनी को लपेटा है
हवाओ ने फिज़ाओ मे इत्र को भी फेंका है
देख कर तडप मेरी समझा नही यार मेरा
इश्क़ का मौसम है और वो दूर बैठा है...-
खुशियाँ तुम्हारी, तुम्हारे अपनो को अखरती है
गर उनकी मर्जी की खिलाफत हो💔-
मै बिखरा था मै फिसला था, संभला नही मै टूट गया
दिल भी टूटा सुकून भी रूठा, साथ जो तेरा छूट गया
कुछ मिले मुसाफिर राह मे, फिर उम्मीद जगा कर बैठ गया
पर समझा ना मुझे तुझसा कोई, सपने जले चुप मै हो गया
फूल भी सारे शूल बने, ना निखर सका मै सिमट गया
तू गया छोड गया कुछ ऐसे, संग ख्वाब भी सारे लूट गया-
दीद हुआ उनका कुछ इस कदर कयामत ढा रहे थे
आसमां के चाँद से भी ज्यादा खूबसुरत नज़र आ रहे थे
महफिल मे सारे ज़हां की नजरें थी यार पर मेरे
फिर भी वो मुझमे ही मशगूल अपनी मोहब्बत निभा रहे थे❤-