(Anjaan Musafir)
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Dard se dillagi lagane ki saja payi hai,
kagaz aur kalam se apni waytha jatayi hai....
Joined 28 April 2020


Dard se dillagi lagane ki saja payi hai,
kagaz aur kalam se apni waytha jatayi hai....
Joined 28 April 2020
30 DEC 2020 AT 9:16

खुश रहने के लिए नशा ज़रुरी है...
फिर वह नशा दौलत का हो या इश्क का!!!

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23 AUG 2020 AT 18:33

आज जी भर के हंसलो और गुनगुनालो,
रोज रोज ये बचपन की कहानी नहीं आती...

वक़्त है तो छू लो हिमालय के शिखर को,
रोज रोज यह अल्हड़ जवानी नहीं आती...

जी लों ज़िंदगी एक बार में सनम,
रोज रोज ये प्यार की रवानी नहीं आती...

जीत लो आज ज़िंदगी की दौड़ को,
रोज रोज हिम्मत को आजमानी नहीं आती...

मिल जाए ईश्वर तो हमें इत्तला कर देना,
रोज रोज मंदिर में घंटी बजानी नहीं आती...

जो दे दिया उसी में मस्त है हम,
रोज रोज उससे फरियाद करनी नहीं आती...

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20 AUG 2020 AT 6:10

ज़िन्दगी

एक आस और एक काश में डोलती है ज़िन्दगी,
उम्मीदों और निराशाओं का समावेश है ज़िन्दगी...
कुछ मिलते हैं,कुछ बिछड़ते हैं,इस सफ़र में ज़िन्दगी,
रोशनी की चाहत में,अँधेरे को चीरती ज़िन्दगी...

कठपुतली सा नाच रहे हैं,रंगमंच हैं ज़िन्दगी,
शतरंज की बिसात के बस प्यादे हैं ज़िन्दगी...
सुना हैं,तेरा वजूद भी उसके हाथों में हैं ज़िन्दगी,
फिर क्यों तरसता और तड़पता हैं ,जब मुक़द्दर तय हैं ज़िन्दगी...

मीलों चलना हैं,अभी से क्या थकना हैं जिंदगी,
आराम के लिए मौत खड़ी हैं,कुछ पल जिले ज़िन्दगी...
एक अवसर मिला हैं,ऐसी अदाकारी दिखा ए ज़िन्दगी,
रोते हुए अकेले आया था सबको रुला कर जाए ए ज़िन्दगी...

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16 AUG 2020 AT 21:56

जवां होने की चाहत में,
अपना सबकुछ गंवाया था हमने....
वो मासूमियत,वो खुशनुमा बचपन,
अपने दोनों हाथों से लुटाया था हमने...

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14 AUG 2020 AT 22:42

ढूँढता है हर गली हर मोहल्ले उसको,
फिर उसको देख अपना रास्ता बदलता क्यों है...?

जवानी की गलतियों से सबक ले चुका है,
फिर न जाने उसे देख दिल धड़कता क्यों है...?

माना कि सच्चा प्यार दोबारा नहीं होता,
तो फिर उसके इंतजार में सुबह से शाम होता क्यों है...?

इश्क के जाल मे नजाने कईयों बर्बाद हुए,
फिर भी इश्क की बेड़ियों को हर कोई पहनता क्यों है...?

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9 AUG 2020 AT 19:51

न जाने ये ख़ामोशी किस कदर रुलाएगा,
एक दर्द भरा सागर अब उमड़ कर आएगा...
मौत की डगर पर ज़िन्दगी की तलाश हैं,
किश्तों में बंट रही खुशियाँ,
कुछ उधारी कि हमें भी आस हैं...

होश में रहकर क्या पाया था हमने,
मदहोशी में एक नई कारवां की तलाश हैं...
लड़खड़ाते है कदम,मंजिल भी गुमशुदा हैं,
न जाने क्यों हर शख्स अब लगता बेवफा हैं...

तकदीर की ठोकर ने कुछ ऐसा गिराया हैं,
बरगद के वृक्ष को वक़्त की आँधियों ने झुकाया हैं...
उठ जाऊंगा खुद को समेटकर मैं फिर से,
सही वक्त का बेसब्री से मुझको भी इंतजार हैं...

ये रात का सन्नाटा चीख चीख कर पुकारता हैं,
वो ज़िंदगी ही क्या जिसमें अंधेरा नहीं आता हैं...
उजाले का इन्तजार हमें भी मुद्दतों से हैं,
एक नई उम्मीद फिर से पनपने को हैं...

छोड़ दिया पीछे जो भी कुछ साथ लाया था,
जिन्दगी को एक नए सिरे से आज़माना हैं ...
थक कर, हारकर बैठना मुझको गवारा नहीं,
ए तकदीर तुझे हराकर इसबार जश्न मनाना हैं...

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5 AUG 2020 AT 21:27

किसकी राह देखते हों,
किसका इंतज़ार करते हो..??
जिसको फर्क नहीं पड़ा तुम्हारे रहने से,
तुम उसके लिए क्यों मरते हो.. ??

दो पल की ज़िंदगी है,
क्यों आंसुओं में ख़र्च करते हों..??
बन जाओ किसी का सहारा,
क्यों जिंदगी को यू जाया करते हों..??

एक बसेरे की चाहत में,
क्यों इतना नीचे गिरते हों..??
खुला आसमान मिला है सर पे,
तुम क्यों पिंजड़े में फंसते हो..??

कभी फुर्सत में मिलो खुद से,
तुम क्यों खुद को अकेला समझते हो..??
हर शख्स दर्द बांटने को खड़ा है,
तुम क्यों दुनिया से मुंह मोड़ते हो..??

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1 AUG 2020 AT 5:10

बहुत दूर निकल चुका हूं,
मैं तेरा शहर पीछे छोड़ चुका हूँ...

ना वक़्त का इल्म है,न मंजिल की फिक्र मुझे,
मैं अपनी धुन में चहुँ ओर भटक रहा हूँ...

क्या मांगा था,बस दो पल का साथ ही तो,
तेरी दी तन्हाई में,सुबह से शाम गुजार रहा हूंँ...

खुशनसीब हैं वो लोग,जिन्हें मोहब्बत मिलती है,
मैं तो नफ़रतों की पोटली संघ लिए विचर रहा हूँ...

एक मुमकिन आशियाने की चाहत लिए दिल में,
मैं हर किश्ती,हर सागर के उस पार निकल रहा हूँ...

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19 JUL 2020 AT 23:04

मुश्किलों को मुस्कुराकर,
तूफानों को मोड़कर,
तकदीर को बदलकर,
अपना सफ़र जारी रख...

अड़चनों का पहाड़ है,
नाउम्मीदी का संसार है,
आंसुओं में हंसकर,
अपना सफर जारी रख...

हौसलों की मिसाल बन,
वज्र सा चट्टान बन,
कांटों भरी पगडंडी पर,
अपना सफ़र जारी रख...

लाख लोग गिराएंगे,
हर बात पे सतायेंगे,
कर्म की डगर पे,
अपना सफर जारी रख...

वक़्त को चुनौती दे,
किस्मत को पछाड़ दे,
जीवन के विष को पीकर,
अपना सफर जारी रख...

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18 JUL 2020 AT 20:58

वो चाँद जब करीब था, रौशन हर मंजर था...
सूरत ही निहारते रहते थे, वो मेरी जिंदगी का जिंदगी था...

वक्त हो चला था,वो चाँद ढल चुका था...
अमावस्या की अंधेरी में,ज़िन्दगी बदरंग पड़ा था...

उस पूर्णिमा की राह, एक टक निहार रहा था...
एक महीने के इंतजार में, बरसों गुजार रहा था...

दुनिया वालों का चाँद, हर महीने निकलता था...
मेरी ज़िंदगी का चाँद, न जाने कहाँ लापता था...

वीराने में,एक सुई तलाश रहा था...
मैं नाउम्मीदी में, उम्मीदों की ज्योत जला रहा था...

जिंदगी की रफ्तार में, बहुत दूर निकल गया हूँ...
तेरी याद में ए चाँद, मैं खुद को भूल गया हूँ...

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