रोहन कौशिक  
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Biassed.
Joined 9 September 2017


Biassed.
Joined 9 September 2017

ऐसे-ऐसे ज़ाविए¹ खुलते हैं मुझ पर ख़्वाब में
मीर का दीवान सरहाने रखा घबराए है

ایسے ایسے زاویے کھلتے ہیں مجھ پر خواب میں
میر کا دیوان سرہانے رکھا گھبراے ہے

— रोहन कौशिक | روہن کوشک






1. नज़रिया, दृष्टिकोण

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आख़िर को सब्र चुक गया, मुश्ताक़¹ उड़ गए
बाद-ए-बहार-ए-हुस्न² में उश्शाक़³ उड़ गए
آخر کو صبر چک گیا مشتاق اڑ گۓ
باد بہار حسن میں عشاق اڑ گۓ

काग़ज़ का ढेर था मेरा सरमाया-ए-हयात⁴
ठहरी हवा-ए-ज़ीस्त⁵ तो औराक़⁶ उड़ गए
کاغذ کا ڈھیر تھا مرا سرمایۂ حیات
ٹھہری ہواۓ زیست تو اوراق اڑ گۓ

— रोहन कौशिक | روہن کوشک



1. इच्छुक; 2. सौंदर्य के वसंत की हवा; 3. आशिक़ का बहु.
4. जीवन की कमाई; 5. जीवन की हवा; 6. वरक़ का बहु. (Pages)

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ऐसा नहीं ढलान से आया हुआ हूँ मैं
इक तीर हूँ कमान से आया हुआ हूँ मैं

किरदार मुख़्तसर है मगर आप देखिए
किस आन-बान-शान से आया हुआ हूँ मैं

दशकों की बेकली से बनाया गया तुम्हें
सदियों की खींचतान से आया हुआ हूँ मैं

देखो यहाँ पे हुस्न का कितना अकाल है
समझो कि आसमान से आया हुआ हूँ मैं

मिसरों के दरमियान ही चुक जा रहे हैं आप
लफ़्ज़ों के दरमियान से आया हुआ हूँ मैं

मुझको जुनूँ का कोई हवाला न दीजिए
मजनूँ के ख़ानदान से आया हुआ हूँ मैं

— रोहन कौशिक

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सुनता ही नहीं यार कोई आह हमारी
जिस माह भी आती नहीं तनख़्वाह हमारी

इतना भी यक़ीं ग़ैर का करना नहीं अच्छा
हर बात निकल जाए न अफ़वाह हमारी

सहरा में भटकना तो फ़क़त ज़ौक़-ए-जुनूँ¹ है
दरिया तेरी लहरें ही हैं हमराह हमारी
1. उन्माद का आनंद

औरों से गिला क्या करें, किस मुँह से करें हम
ख़ुद हमको ही रहती नहीं परवाह हमारी

आते भी हैं शागिर्द तो उस्ताद की सूरत
कोने में सिसकती है हर इस्लाह¹ हमारी
1. सुधार करना

— रोहन कौशिक

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आग ऐसी है जो पानी से भड़क उठती है
अब के सावन से बहुत ख़ुश तो नहीं हैं हम-तुम

آگ ایسی ہے جو پانی سے بھڑک اٹھتی ہے
اب کے ساون سے بہت خش تو نہیں ہیں ہم تم

— रोहन कौशिक | روہن کوشک

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है सरापा ज़िंदगी का सार वेटिंग लिस्ट में
इक टिकट कन्फ़र्म है तो चार वेटिंग लिस्ट में

इस सदी के नौजवाँ का हाल बस इतना सा है
नौकरी वेटिंग में है और प्यार वेटिंग लिस्ट में

भोगकर देवत्व देवों के ही वंशज तज गए
आदमी होता गया ख़ूँख़ार वेटिंग लिस्ट में

इक नज़र तो देख लीजे, इक इनायत की नज़र
मर रहे हैं आपके बीमार वेटिंग लिस्ट में

रख दिया कितनों ने सर टीटी के क़दमों में 'जबर'
हम सँभाले ही रहे दस्तार वेटिंग लिस्ट में

— रोहन कौशिक

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काँधों पे उठाकर इसे चल भी नहीं सकता
सर अपना किसी से मैं बदल भी नहीं सकता

एक ओर तो बेचैनियाँ हद तोड़ रही हैं
और जी है बिचारा कि मचल भी नहीं सकता

संजीदगी के ऐसे लबादे में कसा हूँ
नश्शा-ए-मसर्रत¹ में उछल भी नहीं सकता
1. प्रसन्नता का उन्माद

रख भी नहीं सकता तेरे क़दमों में सर इस बार
औरों के रखे सर मैं कुचल भी नहीं सकता

रहते हैं तिलिस्मात¹ भी कुछ देर तिलिस्मात
अब दिल तेरी सूरत से बहल भी नहीं सकता
1. चमत्कार (बहुवचन)

— रोहन कौशिक

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मक़्तल¹ समझ के आ गये महफ़िल को मुहतरम²
हर शेर चाहिए इन्हें सीने के आर-पार

— रोहन कौशिक







1. वध स्थल; 2. श्रीमान

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इस भीड़ में अब अपनी नज़र किसके पास है?
हैं सब किराएदार तो घर किसके पास है?

इक मातमी ये सोचके हँस-हँसके मर गया
पत्थर सभी के पास हैं, सर किसके पास है?

दुनिया हसीं नहीं प' मयस्सर सभी को है
ख़ल्वत¹ हसीन शय है मगर किसके पास है?
1. एकांत

हैरत है पूछने को भी आया नहीं कोई
इस बे-चराग़ शब¹ में शरर² किसके पास है?
1. रात; 2. चिंगारी

मिट्टी है, चाक है; मगर इक मसअला भी है
ये ढूँढ़ना है दस्ते-हुनर¹ किसके पास है?
1. हाथ का हुनर

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जिस मुसीबत में जान है प्यारे
किसको जीने का ध्यान है प्यारे

"मैं भी मुँह में ज़ुबान रखता हूँ"
ये भी अच्छा गुमान है प्यारे

इसका मेहनत से राब्ता न बता
अपनी-अपनी थकान है प्यारे

वो भी सादा है, हम भी सादा हैं
बस यहीं खींच-तान है प्यारे

मौत में कुछ लिहाज़ हो शायद
ज़िन्दगी बद-ज़ुबान है प्यारे

मुँह में आया जो बक दिया तुमने
क्या सुख़न पीकदान है प्यारे?

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