सलवार,कमीज़,बुर्क़ा भी कुछ ना कर पायेगा
अगर हर इन्सान अपनी नज़र नहीं झुकायेगा
श़र्म,हया,और इज्ज़त भी कुछ ना कर पायेगी
अगर हर औरत अपनी नज़र नहीं झुकायेगी
इश़्क,प्यार,और मोहब्बत में पड़ गये हम सब
नज़र ही तो है, अब वो कैसे पीछे रह जायेगी
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई करने में ही रह गये
धर्म ही तो है, इजाज़त तो अब मिल ही जायेगी
सिगरेट, श़राब, चरस कहकर सब कर ही लिया
नश़ा ही तो है, ये पीढ़ी अब आगे कैसे बढ़ पायेगी
चोरी, बलात्कार, क़त्ल ये सारे सवाल ख़ुद से पूछो
गुनाह ही तो है, ये दुनिया कल सब भूल ही जायेगी
रदीफ़, क़ाफिया, और बहॄ कहकर भर लो ज़िन्दगी
"कोरा कागज़" ही तो है, इक दिन लिख ही जायेगी
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