मुझे भी तुम्हारा कहेगा ज़मानामोहब्बत जो मेरी पढ़ेगा ज़मानाज़माने में मैं भी मिलूँगा कहीं परजुदा तुमसे कब तक करेगा ज़मानाचले आना मिलने किसी रोज़ मुझसेसुनो! अब न पीछे पड़ेगा ज़मानामोहब्बत से हम-तुम जो मिलते रहेंगेतभी उस ख़ुदा से डरेगा ज़मानाग़ज़ल जब लिखोगे ज़माने पे "आरिफ़"तभी याद तुम को रखेगा ज़माना -
मुझे भी तुम्हारा कहेगा ज़मानामोहब्बत जो मेरी पढ़ेगा ज़मानाज़माने में मैं भी मिलूँगा कहीं परजुदा तुमसे कब तक करेगा ज़मानाचले आना मिलने किसी रोज़ मुझसेसुनो! अब न पीछे पड़ेगा ज़मानामोहब्बत से हम-तुम जो मिलते रहेंगेतभी उस ख़ुदा से डरेगा ज़मानाग़ज़ल जब लिखोगे ज़माने पे "आरिफ़"तभी याद तुम को रखेगा ज़माना
-
दर्द होगा सह लूँगा मरते-मरतेकुछ न कुछ तो कह लूँगा मरते-मरतेछोड़कर तुम जाओगे, जाओ-जाओबिन तुम्हारे रह लूँगा मरते-मरतेयाद आई कल मुझको गर तुम्हारीआँख भर कर बह लूँगा मरते-मरतेइश्क़ करके तुम मुझसे दूर जानाकतरा-कतरा ढह लूँगा मरते-मरते -
दर्द होगा सह लूँगा मरते-मरतेकुछ न कुछ तो कह लूँगा मरते-मरतेछोड़कर तुम जाओगे, जाओ-जाओबिन तुम्हारे रह लूँगा मरते-मरतेयाद आई कल मुझको गर तुम्हारीआँख भर कर बह लूँगा मरते-मरतेइश्क़ करके तुम मुझसे दूर जानाकतरा-कतरा ढह लूँगा मरते-मरते
इश्क़ है उसको कहा करती थीसिर्फ़ मुझसे ही वफ़ा करती थीरोज़ आती थी बहाने करकेजाने क्या-क्या वो सहा करती थीराज़ गहरे थे निगाहों में तबदर्द अन्दर ही जमा करती थीपास आ करके रिझाती मुझकोमेरी पलकों पर रहा करती थीकाश 'आरिफ़' भी समझ लेता सबइश्क़ उसको ही करा करती थी -
इश्क़ है उसको कहा करती थीसिर्फ़ मुझसे ही वफ़ा करती थीरोज़ आती थी बहाने करकेजाने क्या-क्या वो सहा करती थीराज़ गहरे थे निगाहों में तबदर्द अन्दर ही जमा करती थीपास आ करके रिझाती मुझकोमेरी पलकों पर रहा करती थीकाश 'आरिफ़' भी समझ लेता सबइश्क़ उसको ही करा करती थी
तुमने देखा है सिर्फ़ ख़्वाबों कोतुमने ख़्वाबों में कहाँ देखा है -
तुमने देखा है सिर्फ़ ख़्वाबों कोतुमने ख़्वाबों में कहाँ देखा है
कश्तियों को ख़ुद से ही मझधार करके होगा क्याडूबना जब तय ही है तब प्यार करके होगा क्याअब मोहब्बत की मुझे भी कुछ समझ तो हो गईमन में उल्फ़त ही नहीं इज़हार करके होगा क्याख़्वाब देखो तुम परी के जब मोहब्बत दिल में होगंदी नीयत ले के नइया पार करके होगा क्यासब की इज़्ज़त बेचते हो जब तुम्हारे मन में होझूठ जैसी ये ग़ज़ल अख़बार करके होगा क्यालोग "आरिफ़" की सुनेंगे ऐसी क़िस्मत अब कहाँलफ़्ज़ अपने बेवजह तलवार करके होगा क्या -
कश्तियों को ख़ुद से ही मझधार करके होगा क्याडूबना जब तय ही है तब प्यार करके होगा क्याअब मोहब्बत की मुझे भी कुछ समझ तो हो गईमन में उल्फ़त ही नहीं इज़हार करके होगा क्याख़्वाब देखो तुम परी के जब मोहब्बत दिल में होगंदी नीयत ले के नइया पार करके होगा क्यासब की इज़्ज़त बेचते हो जब तुम्हारे मन में होझूठ जैसी ये ग़ज़ल अख़बार करके होगा क्यालोग "आरिफ़" की सुनेंगे ऐसी क़िस्मत अब कहाँलफ़्ज़ अपने बेवजह तलवार करके होगा क्या
जहाँ उल्फ़त का हक़ मुझको चुकाना थावहाँ नफ़रत का हर दिल में घराना थाचला था इश्क़ करने को जिधर भी मैंखड़ा ज़ालिम उधर भी ये ज़माना थाकरूँ अब इब्तिदा कैसे मोहब्बत कीसुना किस्सा भी उल्फ़त का पुराना थागुनाहों की मुआफ़ी कब मिली मुझकोकहाँ सज़्दे में सिर मुझको झुकाना थामिली मुझको मोहब्बत में दग़ा सबसे ख़ुदा जाने मुझे क्या-क्या कमाना थातुम्हें पागल समझते हैं सभी "आरिफ़"अरे! किस-किस को पागलपन दिखाना था -
जहाँ उल्फ़त का हक़ मुझको चुकाना थावहाँ नफ़रत का हर दिल में घराना थाचला था इश्क़ करने को जिधर भी मैंखड़ा ज़ालिम उधर भी ये ज़माना थाकरूँ अब इब्तिदा कैसे मोहब्बत कीसुना किस्सा भी उल्फ़त का पुराना थागुनाहों की मुआफ़ी कब मिली मुझकोकहाँ सज़्दे में सिर मुझको झुकाना थामिली मुझको मोहब्बत में दग़ा सबसे ख़ुदा जाने मुझे क्या-क्या कमाना थातुम्हें पागल समझते हैं सभी "आरिफ़"अरे! किस-किस को पागलपन दिखाना था
फिर इश्क़ जी रहा है मुस्कान के सहारेमिलता नहीं है कुछ भी इंसान के सहारे वादा किया था मुझसे रक्खे गा साथ अपनेवादा वो छोड़ बैठा भगवान के सहारे दिल चीज़ क्या है ये भी बतला दो आज उसकोरहता ये फूल कब तक गुल-दान के सहारे आएगा पास इक दिन होगी उसे मोहब्बत समझा रहा हूँ दिल को इमकान के सहारे 'आरिफ़' का हाथ उसने पकड़ा है बेबसी मेंचलती नहीं मोहब्बत मीज़ान के सहारे -
फिर इश्क़ जी रहा है मुस्कान के सहारेमिलता नहीं है कुछ भी इंसान के सहारे वादा किया था मुझसे रक्खे गा साथ अपनेवादा वो छोड़ बैठा भगवान के सहारे दिल चीज़ क्या है ये भी बतला दो आज उसकोरहता ये फूल कब तक गुल-दान के सहारे आएगा पास इक दिन होगी उसे मोहब्बत समझा रहा हूँ दिल को इमकान के सहारे 'आरिफ़' का हाथ उसने पकड़ा है बेबसी मेंचलती नहीं मोहब्बत मीज़ान के सहारे
खिलते रहे हैं फूल मोहब्बत के नाम परबोये हैं बीज जब भी बगावत के नाम पर मिलने को रोज़ अब भी बुलाते हैं वो मुझेकरते हैं इश्क़ लोग शरारत के नाम पर काँटों से बैर करके गुलाबों से दोस्तीखाओगे ज़ख़्म तुम भी हिफ़ाज़त के नाम पर उल्फ़त का क़त्ल कर दो निगाहों से आज तुमधोखाधड़ी है बिकती शराफ़त के नाम पर किसको दिखाऊँ ज़ख़्म ये 'आरिफ़' बताओ तुमबहता है रोज़-रोज़ अदावत के नाम पर -
खिलते रहे हैं फूल मोहब्बत के नाम परबोये हैं बीज जब भी बगावत के नाम पर मिलने को रोज़ अब भी बुलाते हैं वो मुझेकरते हैं इश्क़ लोग शरारत के नाम पर काँटों से बैर करके गुलाबों से दोस्तीखाओगे ज़ख़्म तुम भी हिफ़ाज़त के नाम पर उल्फ़त का क़त्ल कर दो निगाहों से आज तुमधोखाधड़ी है बिकती शराफ़त के नाम पर किसको दिखाऊँ ज़ख़्म ये 'आरिफ़' बताओ तुमबहता है रोज़-रोज़ अदावत के नाम पर