QUOTES ON #MAA

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17 HOURS AGO

मेरा खुदा कहता है कि,
माँ के कदमों तले जन्नत है,
और मैं कहती हूँ कि,
मेरी माँ मेरी जन्नत है।

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25 APR AT 21:32

आज लिखना है....
तुम्हारी बातें,
तुम्हारी सारी यादें....!
हाँ तब से जब चलना सीखा था
बोलना सीखा था,
हाँ तब से भी जब यादें बनने लगी
और जानने लगी मैं दुनिया
समझने लगी मैं बुआ-फूफा,मामा-मामी..
तुम टोक सकती हो कि दादा-दादी को क्यों नहीं;
क्योंकि शुरू से देखा मैंने तुम्हें उनसे बेटी की तरह झगड़ते;उनकी जिद् मानते ...
हां कभी-कभी तुम भी जिद करती थी
बिल्कुल मेरे जैसी.....
मेरे जैसी?
हाँ! तुम मेरे जैसी ही तो थी
क्योंकि बेटी तो तुम्हारी ही हूं न...
पता है मुझे तुम्हें बिल्कुल पसंद नहीं था
मेरा खेलते-खेलते कहीं गुम हो‌ जाना
किसी के घर छुप कर बैठ जाना
कि तुम खोज न पाओ...
पर जाने‌ कहां से तुम आ धमकती थी वहां भी;
कितना कुछ ....
सब उकेरना चाहती हूँ
एक पन्ने पर ....
क्या मुमकिन है?
पन्ने पर न सही पर लगता है
एक बार फिर तुम ही जी रही हो
मुझमें; क्योंकि अब मैं भी हु-ब-हू वही हूँ
जो उस समय तुम थी ......
पन्ने पर न‌ सही मेरे जीवन‌ में हो तुम
कल भी, आज भी और‌ शायद आजीवन....!

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25 APR AT 17:23

दो रोटी लिए पीछे-पीछे घूमती थी
आज एक एक रोटी को तरसना पड़ता है
मां पूछती है "कैसा है तू"
"अच्छा हूं" यह बोलना पड़ता है

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25 APR AT 14:27


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24 APR AT 23:10

माँ शब्द कोरे कागज़ पर उकेरा हर्फ़ सा है l
इक बार जो लिखा गया वो फिर मिटा न है
कोशिशें तमाम हुई मिटाने की ग़र इश्क़बाज
इसके बाद जो भी लिखा गया वो माँ न है l

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24 APR AT 21:20

पढ़ के देखो किताब ए हस्ती में ,
माँ से प्यारा नाम क्या होगा ,
जिसके कदमों के नीचे जन्नत है ,
उसके सिर का मुकाम क्या होगा।

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24 APR AT 13:22

वो खुद तपते धूप में जलकर, मिलों नंगे पैर दौड जाती थी,

माँ थी वो, जो आसमान चीर कर छाँव चुरा लाती थी,

रफ्तार भरी जिंदगी रेस मे, अकेला जब दिल खुद को पाता है,

मुझको वो माँ के आँचल का, ठंडक बहोत याद आता है !


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23 APR AT 20:04

हर रिश्तों में ख़ास हैं.." मां"
प्यार का पहला एहसास हैं.." मां"
दुवाओं की बरसात हैं.." मां"
बिपदा में भी हर पल खड़ी साथ है.." मां "
हमारे संस्कारों की पहचान हैं.." मां"
बिन कहे ख्वाहिशों को भी जो सुन ले ...
वो विश्वास हैं.." मां "
रखना चाहे हर पल आंचल की छाव में
उस ममता की पहचान हैं.." मां"
भगवान का दिया वरदान हैं.." मां"

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23 APR AT 17:06

"मां की कोख"

सारे जहां की खुशियों का बोझ उठाए फिरती है
"मां की कोख"
तेरे बचपन को अपने आंचल में छिपाए फिरती है
"मां की कोख"

तेरे वजूद में आने में कितना दर्द सहती है
घर के काम भी करती है
मूंह से उफ्फ न कहती है

तेरी इक झलक पाने को
वो बेताब सी रहती है
तुझे पाकर इस दुनिया में
उसकी खुशी उसके अश्कों से बहती है

तेरे रोने की सुगबुगाहट से उसकी नींद में खलल पड़ता है
फिर भी तुझे चुप कराने में उसका दिल मचल पड़ता है

तेरी नींद की खातिर रात भर जागती है"मां"
तुझे लोरी सुना सुना कर दुलारती है"मां"

तुझे सूखे में सुलाकर खुद गीले में सो जाती है
अपनी ख्वाहिशें भूल जाती है जब वो "मां"हो जाती है

सारे जहां की खुशियों का बोझ उठाए फिरती है
"मां की कोख"
तेरे बचपन को अपने आंचल में छिपाए फिरती है
"मां की कोख"।

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