"मां की कोख"
सारे जहां की खुशियों का बोझ उठाए फिरती है
"मां की कोख"
तेरे बचपन को अपने आंचल में छिपाए फिरती है
"मां की कोख"
तेरे वजूद में आने में कितना दर्द सहती है
घर के काम भी करती है
मूंह से उफ्फ न कहती है
तेरी इक झलक पाने को
वो बेताब सी रहती है
तुझे पाकर इस दुनिया में
उसकी खुशी उसके अश्कों से बहती है
तेरे रोने की सुगबुगाहट से उसकी नींद में खलल पड़ता है
फिर भी तुझे चुप कराने में उसका दिल मचल पड़ता है
तेरी नींद की खातिर रात भर जागती है"मां"
तुझे लोरी सुना सुना कर दुलारती है"मां"
तुझे सूखे में सुलाकर खुद गीले में सो जाती है
अपनी ख्वाहिशें भूल जाती है जब वो "मां"हो जाती है
सारे जहां की खुशियों का बोझ उठाए फिरती है
"मां की कोख"
तेरे बचपन को अपने आंचल में छिपाए फिरती है
"मां की कोख"।
-