Faseeh Khan   (Faseeh Moosanagri)
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Joined 11 May 2020


Joined 11 May 2020
5 MAY AT 19:06

मुसाफिर हैं सब इस दौर-ए-जहां में
कोई मुकम्मल न ठहरा यहां दुनिया बसाने को

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3 MAY AT 13:54

सब्र एक ऐसा ठहराव है जो जिंदगी के बुरे लमहों में आपके साथ खड़े होकर जिंदगी के अच्छे लमहों तक आपको ले जाने में आपकी मदद करता है

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1 MAY AT 19:50

किसी के लिए पानी की बोतल प्यास बुझाने का काम करती है
तो किसी के लिए रोज़ी रोटी कमाने का काम करती है।

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30 APR AT 12:07

इक पत्थर की बोली हम दिल समझकर लगा बैठे
अपने बाज़ार को बाज़ार में ही लुटा बैठे
खुद की खुद्दारी ने जज़बातों को रोक दिया
न बता सके तुझे कि हम अपना दिल गवां बैठे।

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26 APR AT 14:38

फासला बनाकर रखो तुम
इश्क की गलियों से,
यहां जाने के बाद कोई वापस नहीं आता।

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23 APR AT 17:06

"मां की कोख"

सारे जहां की खुशियों का बोझ उठाए फिरती है
"मां की कोख"
तेरे बचपन को अपने आंचल में छिपाए फिरती है
"मां की कोख"

तेरे वजूद में आने में कितना दर्द सहती है
घर के काम भी करती है
मूंह से उफ्फ न कहती है

तेरी इक झलक पाने को
वो बेताब सी रहती है
तुझे पाकर इस दुनिया में
उसकी खुशी उसके अश्कों से बहती है

तेरे रोने की सुगबुगाहट से उसकी नींद में खलल पड़ता है
फिर भी तुझे चुप कराने में उसका दिल मचल पड़ता है

तेरी नींद की खातिर रात भर जागती है"मां"
तुझे लोरी सुना सुना कर दुलारती है"मां"

तुझे सूखे में सुलाकर खुद गीले में सो जाती है
अपनी ख्वाहिशें भूल जाती है जब वो "मां"हो जाती है

सारे जहां की खुशियों का बोझ उठाए फिरती है
"मां की कोख"
तेरे बचपन को अपने आंचल में छिपाए फिरती है
"मां की कोख"।

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23 APR AT 16:03

तेरे बदन की खुशबू किसी इत्र सी लगती है
किसी शादी में जब तू संवरती है।

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17 APR AT 14:15

बिखर गए हैं आज वो मोती जो कभी तसवीह हुआ करते थे
न जाने कब वो फरिश्ता आएगा जो इक धागे में पिरो देगा सबको।
( मसलक)

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15 APR AT 16:22

अपनी हसरतों के परों को वो काट देती है
गरीबी जब हद से बढ़ती है तो जिंदा मार देती है।

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15 APR AT 9:53

ऊंची ऊंची उड़ानों से कोई बुलंदी नहीं पाता
झुकना पड़ता हैं इस जहां में बुलंद होने के लिए

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