तू किसी रेल सी गुज़रती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ,
तू न एक बार गुनगुनाती है,
फिर भी मैं ये नज़्म पिरोता हूँ,
मैं हूँ घड़ी की सुईयों जैसा,
हर पल तुझपे खर्च हो जाता हूँ,
कैसी जुगलबन्दी है,
ज़ुबाँ पे जो पाबंदी है,
शिकायतों की ज़रा,
अर्ज़ियाँ लगा, अर्ज़ियाँ लगा,
अधजगी जो रातें हैं,
मन की ही तो बाते हैं,
दिल की एक बार ज़रा,
मर्ज़ियाँ लगा, मर्ज़ियाँ लगा,
मैं हूँ कलम की स्याही जैसा,
तुझपे लिखूं तो सूख जाता हूँ..
तू किसी रेल सी गुज़रती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ..!!- zustzoo©
25 JUN 2017 AT 6:47