मैं कितना उदार हूँ वह तुम सोच न सकोगे।।
कहीं मैं काला ओर गोरा में फर्क ढूंढता हूँ
तो कहीं आर्य ओर अनार्य में।
कहीं मेरा कर्मकांड
जिहाद के नाम पे चलाता हूँ
तो कहीं गौ माता रक्षा के नाम।
कहीं साम्यवाद प्रतिष्ठा
तो कहीं साम्राज्यवाद के नाम।
कहीं मैं स्वाधीनता प्रतिष्ठा के नाम
कहीं आधुनिकीकरण की नाम में
मेरा व्यापार फैलता हूँ।।
कहीं तो देशभक्ति
तो कहीं धर्मभक्ति
है मेरा कार्यसूची
दुनिया में कहीं भी।।
मैं खेलता हूँ लोगों के
भावनाओं के साथ
दिनभर से रात तक।।
- ZR