मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा उस को छुट्टी न मिली जिस को सबक़ याद हुआ - मीर ताहिर अली रिज़वी - ज़ारा
मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा उस को छुट्टी न मिली जिस को सबक़ याद हुआ - मीर ताहिर अली रिज़वी
- ज़ारा