उन चंद लम्हों में कई बार दिल ने रुकने को कहा।
हर बार हमने दिल को रुकने को कहा।
दरवाजे की तरफ उन कांपते हुए हाथों को बढ़ते हुए भी कई बार खयाल आया
की लौट चले उन वीरान सड़कों पे, जहा से खाली हाथ लौटे है।
पर इस बार थोड़ी हिम्मत कर के घर के अंदर दाखिल हुए।
ना जाने क्यों घर का अंधेरा उन रास्तों के अंधेरे से ज़्यादा लग रहा था।
माचिस की तीली निकाल कर जलाई तब कुछ रोशनी ने हमारे ही घर में हमारा स्वागत किया।
थक हार कर आए थे, ना दिल में जान बची थी और ना शरीर में।
पास रखी कुर्सी को अपनी ओर खींचा और वही बैठ गए।
ना जाने बैठे बैठे कब आंख लगी और जब वापस कुछ होश आए तो सुबह हो चुकी थी।
बाहर की ओर बढ़े, बाहर देखा तो सभी लोग अपने करीबियों के साथ हस मुस्कुरा रहे थे।
मायूसी कब और कहा काम रह गई थी,
की उस एहसास - ए - कमतरी ने भी हमें अपना शिकार बना लिया।
#Talaash #3
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