कितना करें तर्क यहां..
कितना पड़े फ़र्क कहां..
ज्ञान बांधे प्रेम साधे..
वरना बेड़ा गरक जहां..
कितना जमा हो के व्यर्थ..
कितना कमा के हो समर्थ..
हाथ मैले पांव फैले..
हर पड़ाव पे बदले अर्थ..
कितना ताप मान के गर्म..
कितना अपना जान के नर्म..
दोष आंके द्वेष झांके..
कर्म के क्रम का अपना धर्म..
कितना दिखे चमकता स्वर्ण..
कितना बिके सच्चा दर्पण..
रात माया दिन भी ज़ाया..
समय में सिमटे जीवन मरण!!!-
#philosufi
Burning the mind with water around..
Waves were splashing, comfort profound..
Floating with head down, eyes wide shut..
The sea then froze when I craved for ground..
Sun couldn't sink today with evening sky..
Moon came in grey night, like it could fly..
I ran on the sea mattress, knees locked up..
My sweat drops bled until their last try..
Water burns on mind, sun burns on skin..
Well the Sun also searching its next of kin..
Raised both my hands, for peace, in no war..
Until blood and sweat mixed, could wash away the sin!
Nature's battles with the natural character..
Day night set rise, sun's skill was a factor..
Plates tectonic with plot ironic..
Not worth deciding who was a better actor!!-
बादल फटा जमीं पे सुनामी कहीं गिरा दिया..
पेड़ हरे भरे थे कैसे पानी से जला दिया..
प्यासे पंछी प्यासी धरती प्यासा हर इंसान था..
मिट्टी को डुबा के फिर मिट्टी में ही मिला दिया!
आग का एक अलग थलग समंदर बह निकला..
इक चिंगारी का छींटा बन दलदल सा फिसला..
पतंगा आए.. ज़िद सुनाए.. रोशनी, न पकड़ पाए..
तो आंखें मूंद लपटों से लिपट, वही कहानी कह निकला..
एक तरफ़ हवाओं ने अपनी गुफ़ा ख़ास तैयार की..
खुल के ली जाए सांस जहां, चाहे हो उधार की..
एक तितली उड़ के आए, पंख झटके हवा बढ़ाए..
भागे उसी हवा के आगे, सोचे बवंडर से प्यार की..
ज़मीं घूम घूम थकी, आसमां की हद आई..
पहाड़ों में गहरे छेद हुए और भरी भरी लगे खाई..
फरिश्ते आए फेंके पासा, देख फिज़ा का खेल तमाशा..
हवा बदली, आग उठी.. बादल निचोड़ - बरखा लाई...!!!-
दिख दिख के दो दिखावे एक लगने लगे..
बिक बिक के दो बहकावे एक लगने लगे..
इश्क़ सा हो रंज में या चाल सी शतरंज में..
छिल छिल के दो छलावे एक लगने लगे..
एक में से एक एक फ़िर दो में बंटने लगे..
पहलू ही जलाने लगा और पल घटने लगे..
वीरान में जहान भरा, दलदल में सामान धरा..
थामे रखी बिसात ए ज़मीं और...
...और इश्क़ ए आसमां छंटने लगे..!-
पल पल में दो पहलू एक लगने लगे..
जल जल के दो जिस्म एक लगने लगे..
दीवार हो मकान में या दौड़ हो मसान में,
दलदल में दो दिल एक लगने लगे!!!
जुट जुट के दो जहान एक लगने लगे..
लुट लुट के दो सामान एक लगने लगे..
घर हो नीलामी में या रिश्ते हों गुलामी में..
टूट फूट के दो वीरान एक लगने लगे..-
We don't know if we live in fear or ignorance.. perhaps uncertainty is bliss but not the negligence!
We don't know if the time is running, passing or still, is it universe's focused choice or our randomly free will..
We don't know if the world has to be first right and ready, or we start off in rush within a storm calm and steady..
We don't know if life is just some sleep & daily bread, or we are stuck in places or maybe stuck in head..
We don't know if we should care the damn clock or flee, anyways the door is shut - while we are the lock and key!!
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हर गुज़रते लम्हे की हसरत.. आगे वक्त ने बेताब की है...
क्या बुने पेंच खाती सुइयों से.. जब पूरी घड़ी ही जनाब की है...
कर्म से भ्रम निकले, जुनून में सुकून आए..
वरना आज की जम्हाई तो कल के खर्राटों ने खराब की है!-