बाहर है जो शोर खोखला
चीत्कार रहा अंतस का मौन
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❤Poetry - unspoken words❤
एक मोम ने ख़ुद को पत्थर कर लिया
वक़्त की खरोचों से ना निकल सका फिर भी वो....-
अंतत: औषधि का रूप धारण कर ही लेती हैं
ये जो अनवरत असहनीय पीड़ाएं होती हैं !!!-
उजाड़ के सब कुछ तूफां निगल गया
जिस खौफ में था, वो डर निकल गया
वक़्त आमादा था तोड़ने पे मुझको
चलते रहे अकेले और रस्ता मिल गया
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जब रास्ते ही सिर्फ मंज़िलें हों
उम्मीदें फिर छतों की ना करना !!!
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असफल !! अवहेलित !!
उपहासित जग के लिए.....
सर्वप्रथम फिर भी स्वयं के लिए
पलायन नहीं किन्हीं भी उपेक्षाओं से
स्वीकृत विषमताएं अनंत गहराईयों से
तभी बढ़ पाता छोटा सा एक कदम आगे
जीवन की प्रत्येक प्रतिकूलताओं से !!!
-vineetapundhir
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ना फ़र्क फिर अवहेलनाओं का
ना फ़र्क फिर महत्ताओं का
ना बुनियाद ना बेबुनियाद
फिर शायद उठ पाए
बेहद वज़नी ये हल्का भार.......
(पूरी रचना अनुशीर्षक में...)-
क्यूँ अनसुनी कर रहे वो प्रार्थनाएं,
जो अंतरात्मा का विलाप हों ???
कैसे निष्ठुर हो जाते हो देख के सब
ईश्वर, जब तुम करुणानिधान हो???
व्यथाएं मेरी, तेरी अपारता से तो कम ही हैं
कैसे हाथ समेट लेते हो फिर जब दामन मेरा हो??
किससे करूँ प्रश्न ये... कौन से करूँ जतन मैं
ना तुम रीझो.... ना तुम समझो....
कैसे सुलझे ये जीवन पहेलियां...
प्रत्युत्तर जब अंततः तुम्हीं हो.....
-vineetapundhir
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दोहरे व्यक्तित्व का पात्र नहीं रही कभी
खलती है ज़माने को कमी मेरी यही-