असफल !! अवहेलित !! उपहासित जग के लिए..... सर्वप्रथम फिर भी स्वयं के लिए पलायन नहीं किन्हीं भी उपेक्षाओं से स्वीकृत विषमताएं अनंत गहराईयों से तभी बढ़ पाता छोटा सा एक कदम आगे जीवन की प्रत्येक प्रतिकूलताओं से !!!
क्यूँ अनसुनी कर रहे वो प्रार्थनाएं, जो अंतरात्मा का विलाप हों ??? कैसे निष्ठुर हो जाते हो देख के सब ईश्वर, जब तुम करुणानिधान हो??? व्यथाएं मेरी, तेरी अपारता से तो कम ही हैं कैसे हाथ समेट लेते हो फिर जब दामन मेरा हो?? किससे करूँ प्रश्न ये... कौन से करूँ जतन मैं ना तुम रीझो.... ना तुम समझो.... कैसे सुलझे ये जीवन पहेलियां... प्रत्युत्तर जब अंततः तुम्हीं हो.....