न जाने कैसे गुजरे बीते साल ,
प्रियतम तुम्हारी याद में ।
अब बस यह रात नहीं बीतती ,
प्रियतम तुमसे मिलने की आरजू में ।
न जाने कैसे होगे प्रियतम तुम ,
पर इस चांदनी जैसे ही होगी ।
पर चांद भी आज छुपाए ,
बैठेहे अपनी चांदनी को।
शायद चांद भी कह रहा है ,
यह रात और बीत जाने दे ।
थोड़ा और प्रियतम की ,
मोहब्बत का इम्ताहन होने दे ।
- कुमार विमल
- कुमार विमल