किसी के पास समय कम था,
किसी को जाने की जल्दी थी,
कोई ठहरा था महफ़िल,
जिसे मिलने की फुर्सत न थी।-
सैर करती जब हवेली मे
चांद भी खिड़कियां बदलता है,
धूप सेंकती जब छत पर
सूरज भी ठहर कर देखता है,
हंसती जब खुल कर
बादल भी जोरों से बरसता है,
शरमा कर जब निगाहें झुकती
मौसम भी रंग बदलता है।
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कुछ लिखता हूं अपने लिए
जिन गमों को कोई नहीं समझ पाता
उसे लिख कर समझता हूं अपने लिए
जिन बातों को कोई समझ नही पाता
उन्हे लिख कर खुद को समझाता हूं
यहां जो लिखता हूं सब अपने लिए-
कितने लोग थे
कितनी यादें थी
अब तो लोग नही हैं
अब यादें तकलीफ़ देती हैं
खुश रहना हैं तो तुम भी वही करो
जो सब कर रहे है
अभी समय है
तुम भी समय के साथ बदल जाओ
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जिन्दगी ख़ूबसूरती से निकल गई
दिल बेचारा महसूस करना चाहता था
जिन पलों को मैंने जिया है
उन्हें फिर से जीना चाहता था-
आंख बंद करके भरोसा किया था
लड़ी थी लड़ाई जिसमें न्याय तुमको ही मिलना था
तुम ख़ुद को न्याय ना दिला सके
जातिवाद के लिए तुम ख़ुद को धोखा दिया था-
अपने किये पर शर्मिन्दा हूं ,
हो सके तो माफ़ कर देना,
मैं गलतियां कर देता हूं
क्या करे दिमाग से थोड़ा मंदा हूं
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वो मां थी
जो बच्चे के भूख के लिए बारूद भरे अनानास को खा लिया
काश तुम्हें मां का दर्द पता होता
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