14 JUN 2020 AT 10:43

सूरज को ढलते देखा है
बादल को थमते देखा है
दो पल रुककर पंछियों को जीवन रस पीते देखा है

जब सुबह के दस्तक देते ही
नींद उनिंदी टूटे तब
सूर्य के स्वागत में मैंने
नारंगी चोला पहने गगन को देखा है
किरणों को अपना अस्तित्व बनाते देखा है

वीना के तारों के टकराते ही
कुछ स्वरों का सरगम बने जब
तब मैंने मन में बस जाने वाले
रागों को पनपते देखा है
संगीत को सजते देखा है

कभी अचानक से एक अरसे बाद
किसी याद का सामने आ जाना
तब खुद को ही याद कर
आंखो को गीला होते देखा है
सपनों को भीगते देखा है

कलियों की छोटी फलियों में
जब हल्का रंग चढ़ता हो
तब रंगो को में रंगो में ढलते देखा है
फूलों को खिलते देखा है

जब रात के नीले कागज पर
तारों का रंग छिड़क जाए
आंखें सपने से भर जाए
और नींद का शासन हो जाए
चांद को मैंने सुरीले तब
नग्मे सुनाते देखा है
रातों को सुनते देखा है

बादलों के झुंड को
पवन के वेग से
उड़ते उलझते देखा है
बारिश की शीतलता में मैंने सूर्य के तेज को ढलते देखा है
दो पल रुककर मैंने पंछियों को जीवन रस पीते देखा है।

- Chitravansh_vidisha