उफ़ ये उमर का बैर,
हमें एक होने नहीं देता,
वो कहता है दोस्त रहेंगे हम,
पर उनका खयाल हमें सोने नहीं देता।
वो खुश है मेरी दोस्ती में,
पर मैं शायद कुछ और चाहती थी उनसे,
जो प्यार आज तक कभी न मिला,
वो पाना चाहती थी उनसे।
हाए उनकी ये वफ़ा,
हम तो मीरा ही बन के रहते हैं,
छोड़ गई जो सीना चीर के,
वो आज भी लफ्ज़ों से उन्हीं की यादें पिरोते हैं।
कितनी खुशनसीब हैं वो,
बिन मांगे मिले हो तुम उन्हें
यहां हम तरसते रहे सच्चे प्यार के लिए,
और वफा का खूबसूरत तोहफा तुमसे मिला है उन्हें।।
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