"इसने सपने देखे जो, सब तोड दिये जायें!
और इनकी आवाज़ इसके कान चीर जाए,
न अगली दफ़ा ऐसी कोई ग़ुस्ताखी होगी,
अरे इश्क- मोहब्बत जाने दे, क़ुरबत भी न होगी।
ये किसने डाला इसके नसीब में ज़रा-सा सुख?
क्या मालूम नहीं तुमको, इसे देना है बस दु:ख?
पिछले जाने कितने जन्म इसने ऐसे काटे,
इसके लिए नहीं लिखनी हैं सुकून की बातें !
जो आ रहा तरस हो इसपे, अपनी जगह दे दो।
तुम जियो धरा पे बन मनुज, जन्नत इसे दे दो!"
- हुई नहीं फ़रिश्तों को बात ये क़ुबूल🤷♀️
अब बो रहे हैं मेरी ज़िन्दगी में ये बबूल🤦🏻♀️
ख़ुदा की हो तमन्ना तो चू भी करे कौन?
जिनके भी मन उदास थे, वो सब भी हुए मौनI
अब मैं भी उन फ़रिश्तों का लिहाज़ रखती हूँ
मैं टूट रही हूँ- ये बात राज़ रखती हूँ।
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