18 JUL 2018 AT 23:05

खेल रही है जिंदगी मेरे ख़्वाबों के साथ,
छेड़ रही है मुझे दिन और रात !
तोड़ रही है मुझे आहिस्ता-आहिस्ता,
बदलना चाहती है मुझे ये धूल में !
पर इसे नहीं पता,
कैसे मैने एक सुनामी को मुद्दतों से
अपने अंदर शांत कर रखा है !
अगर टूटा मेरे सब्र का बांध,
तो बह जाएगी ये उसमे ।।
@k

- @k