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Joined 22 May 2017


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3 HOURS AGO

दिन
ऐसे आए हुए हैं
कि
जीने
से ज्यादा
न जीने के खयाल बढ़ रहे दिन ब दिन

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15 MAY AT 10:14

एक झूठी कहानी
जिसका शीर्षक था गरीब
जिसमें था गरीबी को बेचने का नायाब तरीका
उस कहानी का नायक कहता है–
मैं गरीब था, भूखों सोना पड़ा, वर्षो भिक्षा मांगी,चाय बेचा...
जैसी अनगिनत मनगढ़ंत कहानियां बुनता गया

उसने बेची
अपनी झूठी गरीबी
हर अखबार,चैनल,शहर,
जिला,गांव,मोहल्ला, वॉट्सएप,
लोग और लोगों के दिमाग तक;

गरीबी ऐसी
कि बचपन की तस्वीर सूटबूट में दिखी
गरीबी ऐसी कि भिक्षा मांगकर घूमा दुनिया का हर महंगा शहर..
पहने लाखों के चश्में और सूट..

गरीबी ऐसी कि
उसे अब नही दिखता
किसी गरीब का दुःख, दर्द
जवान हुए भारत की बेरोजगारी,लाचारी,युवाओं के मरते हुए सपने...

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14 MAY AT 21:15

आईना देख कर यूं लगा मुझको
तुमको खोया है मैने या पाया है अपने अंतर्मन को

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11 MAY AT 18:46

इस वक्त
जब हमदोनो
जी रहे हैं एक दुनिया में
दो अलग जिंदगी,दो अलग किरदार;

इसी वक्त
अपने फूलों से
फिर से फूल आया है गुलमोहर

एक समय
इसी जगह मई महीने में तुमने कहा था–
हमदोनो एक दुनिया में जी रहे हैं एक जिंदगी एक किरदार

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2 MAY AT 21:10

धमनियों में दौड़ते हैं reels अब
खून बहता है सड़कों पर पानी के जैसे

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27 APR AT 18:11

कितनी ही शक्लें बना लो तुम
अंदर के खालीपन को भर नही सकते कभी.....

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22 APR AT 18:56

चांद उतरता है आंगन में
आंगन जैसी बात कहां शहरों में

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18 APR AT 19:22

कभी तुम्हे
अहसास हुआ
राह चलते,आईना देखते,कुछ लिखते
कि जितने सहज हो तुम,उतनी सहजता से
ये दुनिया तुमसे नही मिली कभी

या फिर
जितने सहज हो तुम अपनो के लिए
उतनी सहजता क्यों नही है उनमें,तुम्हारे लिए;

लोग आते हैं
हंसते हैं,बोलते हैं झूठी बातें
और जानते हुए भी तुम्हारे दुःख नजरंदाज कर,
सुनाते जाते हैं अपना दर्द;

क्या पाप सोचा होगा उस खुदा ने इनके लिए
जो अवसरवाद जेब में लिए घूमते है

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23 MAR AT 21:43

जैसे
दुर्लभ है
गूलर का फूल देखना;
वैसे ही
दुर्लभ है
किसी आदमी का रोना;

जैसे
सहेज लिए
जाते हैं गूलर के फूल;
वैसे ही
सहेज लेना तुम भी
रोते हुए आदमी के हौसले,प्रेम,..हालात...

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15 MAR AT 19:00

दिन
छितराए हैं ऐसे
जैसे मदार के फल
पक कर उड़ा देते है अपने फुए,

कोई तो हो अब
जो हो मुझसे अधिक मजबूत
चटक गए दिनों में भी सहेज ले अतीत के फुए

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