20 FEB 2019 AT 23:04

खून अपना हो या पराया हो
नस्ल ए आदम का खून है आखिर
जंग मशरिक हो या मगरिव में
अम्न ए आलम का खून है आखिर

बम घरो पर गिरे की सरहद पर
रूहे-तामीर जख्म खाती है
खेत अपने जले या औरो के
जीस्त फाकों से तिलमिलाती हैं

टैंक आगे बढ़े या पीछे हटे
कोक धरती की बाँझ होती हैं
फतेह का जश्न हो या हार का सोग
ज़िंदगी मय्यतो पे रोती हैं

जंग तो खुद ही एक मसला है
जंग क्या मसलाओ का हल देगी
खून और आग आज बरसेगी
भूक और एहतियाज कल देगी
इसलिए ए शरीफ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आंगन में
शम्मा जलती रहे तो बेहतर है



- Umapada