न जाने क्यों हम सभी शिक़वों - शिकायतों के, अम्बार लगाये हुए हैं कभी रूठने कभी मनाने में, ख़ुद को उलझाए हुए हैं क्या वाकई में रखती हैं, ये बातें अहमियत इतनी या बेवज़ह ही ज़िन्दगी, हम पेचीदा बनाये हुए हैं
जाने क्यों हम सभी शिकायतों के अम्बार लगाये हुए हैं कभी रूठने, कभी मनाने में ख़ुद को उलझाए हुए है क्या वाकई में है इन बातों, इन शिकायतों की अहमियत इतनी की बेवज़ह ही हम ज़िन्दगी को पेचीदा बनाये हुए हैं
खुले आकाश में ऊँचा उड़ने की, चाहत है अगर दबे सपनों को अपने, अच्छे से टटोलो तो सही संभावनाओं का अनंत विस्तार है सामने हिम्मत तो करो थोड़ी, पंख अपने खोलो तो सही
बदला करते नहीं रिश्ते कभी लोग निभा नहीं पाते, तो बदल जाते हैं कभी रखते हैं बेकार की दलीलें वो तो कभी हालात को वजह बताते हैं रहते थे जो कभी दिल के पास बहुत अब दूरियाँ बनाते नज़र आते हैं चलती है ज़िन्दगी फिर भी रुकती नहीं बस ज़िन्दगी के मायने थोड़े बदल जाते हैं