जानना है अगर, क्या सच में
जल से ही है, और है जल ही जीवन
इसको बचाया अगर आज
क्या तभी सम्भव हो पायेगा जीवन कल
और समझने के लिए अस्तित्व इसका
वास्तव में क्या इतना क़ीमती है जल
कुछ देर के लिए, तपती धूप में
बिना जल, चलकर देखते हैं मरुस्थल-
न थी ख़्वाहिश कभी
पूरा आसमान पाने की
न थी आज़माइश कभी
किसी से जीत जाने की
कोशिशें थीं मिलने की ख़ुद से
ख़ुद की पहचान, ख़ुद से कराने की
हवा में मद-मस्त, स्वच्छंद उड़ते
उन्मुक्त गगन में पंख फैलाने की
मगर हाँ! ज़िद थी यक़ीनन
बेइंतहा ऐतबार करने की ख़ुद पे
और हर एक डर को अपने
अपनी हिम्मत, अपने हौसलों से हराने की-
यूँ तो वास्ता नहीं कोई
ख़्वाबों का हक़ीक़त से
ख़्वाबों में ही सही
जीने दो हक़ीक़त यारों
कुछ पल की झूठी ख़ुशी
सुकून तो दे जाती है
ठहरे हुए पानी में
कंकड़ तो न मारो यारों-
जो बीत गया, बदलेगा नहीं
क्या होगा कल, पता नहीं
जीवन निहित बस आज में
खुलकर जियो, आज को ही-
जज़्बातों की स्याही में डूब
जब तक चलेगी क़लम मेरी
है यक़ीन, कोई शक़ नहीं मुझे
दिलों में गूँजती रहेगीं नज़्म मेरी-
न कुछ हो पाने की इच्छा
न ही कुछ खोने का डर
हर हाल में रहे मन शांत अगर
समझना पा लिया अमरत्व-
भावनाओं का आदर करो, भावपूर्ण रहो
अच्छी नहीं है लेकिन अत्यधिक भावुकता
संवेदनाएं शेष हैं कम आजकल के परिवेश में
अनुसरण करने योग्य बना दी गयी है व्यवहारिकता-
बंद कमरे में रही, रोती, घुटती
सिसकती ज़िन्दगी यूँ ही
हवा को भी न लगने दी हमने
अपने दर्द-ओ-ग़म की हवा कभी
काश! चुप रहतीं, न करी होती
इन दीवारों ने काना-फूसी इस क़दर
कुछ राज़ दफ़न हो जाते यूँ ही
न होतीं ये बातें सर-ए-आम कभी भी-
तलाशना क्यों यहाँ - वहाँ
ख़ूबसूरती इस ज़िन्दगी की
करते हैं कोशिशें और थोड़ी
और बनाते हैं ख़ूबसूरत ज़िन्दगी-
वो तो सूलूक से अपने
करते रहे इज़हार दिल का
जाने क्यों न समझ पाए
हम ये सलीक़ा उनका
हाल-ए-दिल बयाँ करने का
अंदाज़ कुछ जुदा था उनका
नासमझ हम तलाशते रहे
हर बात में जवाब उनका-