Tulika Srivastava   (तूलिका श्रीवास्तव "मनु")
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जब भी कोई बात मेरे मन मस्तिष्क को परेशान कर जाती है, तो मैं लिखने के लिए विवश हो जाती हूँ।
Joined 10 October 2020


जब भी कोई बात मेरे मन मस्तिष्क को परेशान कर जाती है, तो मैं लिखने के लिए विवश हो जाती हूँ।
Joined 10 October 2020
22 MAR AT 15:20

जानना है अगर, क्या सच में
जल से ही है, और है जल ही जीवन
इसको बचाया अगर आज
क्या तभी सम्भव हो पायेगा जीवन कल
और समझने के लिए अस्तित्व इसका
वास्तव में क्या इतना क़ीमती है जल
कुछ देर के लिए, तपती धूप में
बिना जल, चलकर देखते हैं मरुस्थल

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11 MAR AT 14:32

न थी ख़्वाहिश कभी
पूरा आसमान पाने की
न थी आज़माइश कभी
किसी से जीत जाने की
कोशिशें थीं मिलने की ख़ुद से
ख़ुद की पहचान, ख़ुद से कराने की
हवा में मद-मस्त, स्वच्छंद उड़ते
उन्मुक्त गगन में पंख फैलाने की
मगर हाँ! ज़िद थी यक़ीनन
बेइंतहा ऐतबार करने की ख़ुद पे
और हर एक डर को अपने
अपनी हिम्मत, अपने हौसलों से हराने की

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9 MAR AT 13:30

यूँ तो वास्ता नहीं कोई
ख़्वाबों का हक़ीक़त से
ख़्वाबों में ही सही
जीने दो हक़ीक़त यारों
कुछ पल की झूठी ख़ुशी
सुकून तो दे जाती है
ठहरे हुए पानी में
कंकड़ तो न मारो यारों

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27 FEB AT 13:18

जो बीत गया, बदलेगा नहीं
क्या होगा कल, पता नहीं
जीवन निहित बस आज में
खुलकर जियो, आज को ही

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24 FEB AT 14:51

जज़्बातों की स्याही में डूब
जब तक चलेगी क़लम मेरी
है यक़ीन, कोई शक़ नहीं मुझे
दिलों में गूँजती रहेगीं नज़्म मेरी

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23 FEB AT 12:22

न कुछ हो पाने की इच्छा
न ही कुछ खोने का डर
हर हाल में रहे मन शांत अगर
समझना पा लिया अमरत्व

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23 FEB AT 11:37

भावनाओं का आदर करो, भावपूर्ण रहो
अच्छी नहीं है लेकिन अत्यधिक भावुकता
संवेदनाएं शेष हैं कम आजकल के परिवेश में
अनुसरण करने योग्य बना दी गयी है व्यवहारिकता

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20 FEB AT 0:36

बंद कमरे में रही, रोती, घुटती
सिसकती ज़िन्दगी यूँ ही
हवा को भी न लगने दी हमने
अपने दर्द-ओ-ग़म की हवा कभी
काश! चुप रहतीं, न करी होती
इन दीवारों ने काना-फूसी इस क़दर
कुछ राज़ दफ़न हो जाते यूँ ही
न होतीं ये बातें सर-ए-आम कभी भी

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18 FEB AT 11:46

तलाशना क्यों यहाँ - वहाँ
ख़ूबसूरती इस ज़िन्दगी की
करते हैं कोशिशें और थोड़ी
और बनाते हैं ख़ूबसूरत ज़िन्दगी

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11 FEB AT 10:41

वो तो सूलूक से अपने
करते रहे इज़हार दिल का
जाने क्यों न समझ पाए
हम ये सलीक़ा उनका
हाल-ए-दिल बयाँ करने का
अंदाज़ कुछ जुदा था उनका
नासमझ हम तलाशते रहे
हर बात में जवाब उनका

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