Tulika Srivastava   (तूलिका श्रीवास्तव "मनु")
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जब भी कोई बात मेरे मन मस्तिष्क को परेशान कर जाती है, तो मैं लिखने के लिए विवश हो जाती हूँ।
Joined 10 October 2020


जब भी कोई बात मेरे मन मस्तिष्क को परेशान कर जाती है, तो मैं लिखने के लिए विवश हो जाती हूँ।
Joined 10 October 2020
3 APR AT 11:05

खुले आकाश में ऊँचा उड़ने की, चाहत है अगर
दबे सपनों को अपने, अच्छे से टटोलो तो सही
संभावनाओं का अनंत विस्तार है सामने
हिम्मत तो करो थोड़ी, पंख अपने खोलो तो सही

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29 MAR AT 12:29

बदला करते नहीं रिश्ते कभी
लोग निभा नहीं पाते, तो बदल जाते हैं
कभी रखते हैं बेकार की दलीलें वो
तो कभी हालात को वजह बताते हैं
रहते थे जो कभी दिल के पास बहुत
अब दूरियाँ बनाते नज़र आते हैं
चलती है ज़िन्दगी फिर भी रुकती नहीं
बस ज़िन्दगी के मायने थोड़े बदल जाते हैं

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25 MAR AT 20:07

इस होली चलो ढूँढ लाते हैं, अपने रंग जो ग़ुम हैं कहीं सपनो में
रंगते हैं इस बार ख़ुद को, अपनी भावनाओं के खूबसूरत रंगों में
हर एक रंग हमारा जब, बनाता है हमें औरों से अलग
फिर क्यों मिटाते पहचान अपनी, ख़ुद को रंग कर हम किसी और के रंगों में
चलो! मन के अगिनत रंगों को, अब देखते हैं ख़ुद पर उड़ेल कर
तय है खूब जंचेंगे हम, ख़ुद को पाकर, अपने असल व्यक्तित्व के रंगों में
क्यों भीगते अपराध बोध में, स्वार्थी मान ख़ुद को, अपनी ख़ातिर कुछ भी सोचने में
गलत है क्या, प्यार कर ख़ुद को थोड़ा, कुछ खुशी के रंग, अपने ऊपर उड़ेलने में
असली मज़ा है खेलने का होली तब ही, घुल जायें भाव बेबाक सभी मन के सुंदर रंगों में
बेरंग ज़िन्दगी भी आने लगेगी रंगीन नज़र
खुशी मिलेगी, सुकून मिलेगा, भीतर कहीं मन में छुपे इन्ही रंगों में

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1 MAR AT 12:33

कैसे कहूँ तेरी रुसवाईयों ने
तोड़ा है मुझे किस कदर
बेचैन घुटती कहीं
अपनी ख़ामियाँ तलाशती मिलूँगी
उठ गया यक़ीन ख़ुद से ही मेरा
जाने अपने आप से फिर कैसे मिलूँगी
ये यो तय है मिलती थी बेबाक, बेफ़िक्र जहाँ
बस वहाँ अब मैं किसी हाल न मिलूँगी

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26 FEB AT 11:14

लगता है सबको आसाँ है बहुत
फूलों सा मुस्कुराते रहना
अंदाज़ा भी नहीं इस बात का उनको
की कितने काँटे रूह में धँसे हैं

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26 FEB AT 11:12

तू तो अपना समझ निभाती रही
हर रिश्ते को शिद्दत से "मनु"
लेकिन मखौल बनाकर तेरा ही
मिला तेरे उन अपनो को सुकूँ

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26 FEB AT 11:10

कैसे करूँ अफसोस
की नहीं समझा किसी ने मुझे अपना कभी
परेशानियाँ रहीं हम-क़दम तो जाना
लगती हूँ मैं उन्हे अपनी कितनी

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15 FEB AT 12:54

न जाने ये किसकी कमी है
आँखों में क्यों ये नमी है
कहने को तो हासिल है सब
ये कैसी फिर अजब बेचैनी है

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12 FEB AT 0:37

अपना समझ चाहा है जिसने साथ तेरा
उनका दर्द अनदेखा कर पाओगे कैसे
कह दो उन्हे मैं हूँ हर हाल में साथ तेरे
यक़ीन मौजूदगी का अपनी दिलाओगे कैसे
आगे बढ़कर लगा लो गले आज उन्हें
अपनेपन का एहसास वरना कराओगे कैसे
जो न थामा गर वक़्त रहते हाथ उनका
परेशानियों से उनको बाहर लाओगे कैसे
और जो न रहे वो ज़िन्दगी में कभी
तो यादों को उनकी गले लगाओगे कैसे

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6 FEB AT 23:59

दुनिया की इस भीड़ में अक्सर
कुछ ऐसे लोग भी मिलते हैं
हालातों से जो नहीं वाक़िफ़
अन्दाज़-ए-बयाँ खूब करते हैं
उनको भी मौजो में डालो
तूफाँ से लड़ने दो उनको भी
जो दूर से ताक लहरों को
तूफाँ को खेल समझते हैं
नहीं जानते हैं जो तैरना
न पता उन्हें गहराई का
खड़े होकर रेत पे साहिल की
समंदर लाँघने की बातें करते हैं

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