इस होली चलो ढूँढ लाते हैं, अपने रंग जो ग़ुम हैं कहीं सपनो में
रंगते हैं इस बार ख़ुद को, अपनी भावनाओं के खूबसूरत रंगों में
हर एक रंग हमारा जब, बनाता है हमें औरों से अलग
फिर क्यों मिटाते पहचान अपनी, ख़ुद को रंग कर हम किसी और के रंगों में
चलो! मन के अगिनत रंगों को, अब देखते हैं ख़ुद पर उड़ेल कर
तय है खूब जंचेंगे हम, ख़ुद को पाकर, अपने असल व्यक्तित्व के रंगों में
क्यों भीगते अपराध बोध में, स्वार्थी मान ख़ुद को, अपनी ख़ातिर कुछ भी सोचने में
गलत है क्या, प्यार कर ख़ुद को थोड़ा, कुछ खुशी के रंग, अपने ऊपर उड़ेलने में
असली मज़ा है खेलने का होली तब ही, घुल जायें भाव बेबाक सभी मन के सुंदर रंगों में
बेरंग ज़िन्दगी भी आने लगेगी रंगीन नज़र
खुशी मिलेगी, सुकून मिलेगा, भीतर कहीं मन में छुपे इन्ही रंगों में
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