क्या सोचती हो?
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कि वो इश्क़ करे, उसे इतनी फ़ुर्सत कहाँ,
समय की पाबंदी में हो जाए ये चीज़ उल्फ़त कहाँ?
तिजोरी में बंद दिल उसका, और दिमाग़ से हो वो मुहब्बत कहाँ?
कमाएगा वो बहुत मगर गेसू ए दिलदार के बग़ैर दौलत कहाँ?-
हाथों की लकीरों में वो मिलते, इतना नसीब कहाँ, त्रिती,
तो हमने पन्नों पर ही अल्फ़ाज़ की लकीरें बनाकर तमन्ना पूरी कर ली।-
नज़र से ओझल होकर जान लिए जाते हैं,
रुखसत यूँ होते हैं - जैसे हमारा अरमां लिए जाते हैं
उन्हें ढूंढते-ढूंढते ख़ानाबदोश बन गए हम,
वो हैं कि बार-बार एक नया इम्तिहान लिए जाते हैं।-
मोहब्बत की नज़्में तो हम यूँ ही लिख लेते हैं, त्रिती,
वरना ज़िंदगी के सितम ने फ़ुर्सत-ए-दीवानगी बख़्शी ही कब है!-
I was never meant to stay in halves -
so if ever you remember me in
silent pauses of a shattering day...
when you are homeless, and noises of your mind
that keep you away from me wouldn't be louder
than relentless knowing of your pulsating heart -
run to me in wavelengths of undying red.
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अपनी बेकरारी में भी उनके चैन तलाशती हो, त्रिति,
बेगैरत हो या बदकिस्मत?-
उसको अहमियत देना घाटे का सौदा है, त्रिती,
कोई खाली कर के जाता है, वो खत्म कर के जाएगा।-
उससे दूसरों की शिकायत सुनाती हूँ मैं, त्रिती,
वो जो मुझे महज़ अपनी चुप्पी से मार देगा।-
उसे खो दूं और मुझे पता भी न चले, बात रास नहीं आती, त्रिती,
उसके जाने पर नुकसान भारी होना चाहिए।-