द्वेष, असहिष्णुता और हिंसा का यह पूर्ण पागलपन नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है, हम असहाय महसूस कर रहे हैं, हम क्या बन गए हैं। भारत के इस हाल पर हर पल दिल रोता है। हमने 90 के दशक का आनंद लिया है, वह एक अलग भारत था जिसमें हम बड़े हुए, वह भारत अब केवल सुनहरी यादों का हिस्सा मात्र है।
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