ज़िंदगी की सच्चाइयाँ
सिखाती हैं झूठ बोलना-
अक्ल पे उनकी आता है मुझको तरस
चलती साँसों को जो ज़िंदगी कहते हैं
-
ज़िंदगी की किताब का दूसरा सफ़ह पढ़ रही हूँ
ए ज़िंदगी अब भी रोज़ नए तज़ुर्बे सीख रही हूँ...-
ग़ज़ल
""""""
अजब इस जहाँ का ग़ज़ब है सलीका
है दुश्मन यहाँ.... आदमी आदमी का
तुम्हारी नज़र को.. नज़र भर पिया है
लिया लुत्फ़ यूँ मैंने भी मय-कशी का
किनारे ख़फ़ा हो गए.......... टूट बैठे
नहीं रास आया.... उमड़ना नदी का
न रंगीनियाँ भा सकीं.. उस नज़र को
नशा था जिसे बस.. तिरी सादगी का
ख़ुदा मुझसे मेरा.... ख़फ़ा रह रहा है
सिला ये मिला है.... मुझे बंदगी का
-
हमसे ना पूछिये जिन्दगी के बारे में,
इश्क़ क्या जाने इश्क़ के बारे में..
मिसाल बन कर जीये है हम इस जमाने में,
तुमको सदियाँ लग जाएगी हमे भूल जाने में..
कुछ बातें गुज़र जाने के बाद बताएंगे तुम्हें,
दुआ करो कि एक आख़िरी मुलाकात वहाँ भी हो...-
मुसाफ़िर, दिखा पीठ जाता कहाँ है,
तिरी है जो मंजिल, वो रहती यहाँ है।
मिरे यार मत बैठ थक-हार के अब,
अभी बस में करना ये सारा जहाँ है।
उसे ढूँढ कर ही सुकूं अब मिलेगा,
रक़ीबों बता दो वो रहती कहाँ है।
मुझे दुश्मनों की ज़रूरत नहीं है,
करीबी मिरे सब फ़रेबी यहाँ है।
बरसती जहाँ नैमते है खुदा की,
मसानों में देखो, वो रहते वहाँ है।-
ज़िंदगी में जो पसंद आते है,वही साथ छोड़ जाते है
उनकी खुशियों ख़ातिर हम अपनी खुशियों को भूल जाते है..
उन्हें क्या पसंद है क्या नहीं ये जानने में हम
अपनो के साथ,ख़ुद को भी भूल जाते है..
हम उनकी खुशियों के ख़ातिर दुवाएं मांग आते है,
एक दिन वही हमें तन्हा छोड़ जाते है..
वो क्या समझेंगे तुम्हारे एहसासों,जज्बातों को
जो अपनी खुशियों के ख़ातिर,अपनो का साथ छोड़ जाते है..
ज़िंदगी के एक दौर में वो इतना मगरूर हो जाते है,
कि गर हम बुलाना भी चाहे तो वो मुँह मोड़ जाते है..
उनकी तस्वीर को देखकर मेरा मुरझाया चेहरा खिल जाता है,
गर वो देखो मुझे गैरों के साथ,तो वो ख़ुद में ही जल जाते है..!-
झील सा मन झरनों सा बन, उद्यत है सागर पाने को
आज फ़िर दिल कर रहा है, नदियों सा बह जाने को,
खाली रस्तों से डर लगता है, सन्नाटे ही सन्नाट्टे हैं
कोई तो आकर आहट करदे, "जी" है आज फ़िर मुस्कुराने को,
एक पिपासा ह्रदय में ही रह गई, उसके सिवा मुहब्बत में
काश, कुछ तो जिंदगी में होता... उससे अधिक भी चाहने को,
लोग आकर खुश्बूओं से उड़ गए, यह दिल के बाग भी कैसे हैं
कोई फूलों को तोड़ने आया... कोई तितलियां उडाने को,
झील सा मन..., झरनों सा बन..., उद्यत है सागर पाने को
आज, फ़िर दिल कर रहा है... नदियों सा बह जाने को...!!-
ख़्वाब प्रेम के..... पवित्र बने हैँ
मन में गंगा के जल से चरित्र बने हैँ,
ना इच्छा कोई, ना कोई अपेक्षा है
यह पथ प्रीत के कितने विचित्र बने हैँ,
के रोज़ ही चल पड़ते हैँ उसकी खैरख्वाह में
यह जो नयनों में ख्वाइशों के चित्र बने हैँ,
आज भी वोही ख़ुशबू, वोही ताजगी है
यह कैसे उसकी स्मृतियों के, इत्र बने हैँ,
के अज़ीब है यह... प्रेम कि वाटिका भी
के पुष्प अबतलक भी कंटकों के मित्र बने हैँ !!
-