सुराही-ए-मय में डूबी हैं जड़े जिसकी,
कहानी पूछो तो उस टूटे शज़र से...-
5 MAR 2019 AT 23:56
नफ़स हासिल बशर को आज ज़िन्दा लाश कहते हैं,
बना के झोपड़ा उसे ही तख़्तोताज कहते हैं।
स्याही में डुबो आँखें नीला आसमान रखते हैं,
तस्वीरें देख कर किसी को आफ़ताब कहते हैं।
छिपाने को किसी की नाफ़ जो हिज़ाब करते थे,
बिठा के पास महफ़िल अब हर एक जज़्बात कहते हैं।-
11 JAN 2019 AT 16:35
लिख़ते हो मिटाते हो,
लिख़ते हो मिटाते हो,
ऐसा है...
मोहब्बत नाकाम रहने दो मियाँ तुम...-
13 JAN 2019 AT 23:13
कैसी धोखेबाज़ी है ये....
महफ़िल में मुस्कुराते हो
और क़लम पकड़ते ही रो जाते हो...-