वक़्त से थोड़ा सा वक़्त छीनकर लाऊंगा,
वक़्त को उस वक़्त की कहानी सुनाऊंगा,
यूं उलझाकर वक़्त को वक़्त की बातोंमें,
मैं हर वक़्त की बात वक़्त से कह जाऊंगा !
देखना हर हाल में मैं हालात को रोक पाऊंगा,
हाल न रुके तो रुकने वाला हालात बनाऊंगा,
मैं हर हाल को हालात के जाल में फंसाकर,
ऐसे हाल का मैं हारने वाला हालात बनाऊंगा !
अब तो हमेशा खुदसे एक दौड़ मैं लगाऊंगा,
यूं दौड़ते हुए भागदौड़ को भी मैं थकाऊंगा,
वक़्त के साथ मैं दौड़ को दौड़ना सिखाऊंगा,
दौड़ते दौड़ते एक दिन दौड़ को भी हराऊंगा !-
वो वक़्त गुजर गया,
जो हमें मिलाने की
कोशिश करता था...
अब ऐसा वक़्त आया है,
जो हमें अलग करने की
साजिशें रच रहा है...-
किताबो ने ज़िन्दगी का वो सबक ना दिया जो ज़िन्दगी के संघर्ष ने दिया......
ज़िन्दगी के संघर्ष से अनुभव हुआ कि हमारी ज़िन्दगी का आधार ही संघर्ष है....
ज़िन्दगी ने इतना धैर्य दिया कि हर पल में खुशियां ढूंढ ली हमने.......
ज़िन्दगी का हर पड़ाव हमें एक अनुभव दे जाता है जो मानो तो बहुत कुछ ना मानो तो कुछ भी नही.......
ज़िन्दगी के बारे में जितना लिखू उतना कम है क्योकि ये शब्दो से नही हालातो से बयान होती है.....
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अपनेपन में भी परायापन
खुशी में भी ना खुश
दर्द भी बेदर्द
महसूस होने लगा
तब हमने भी कह दिया कि जाओ....
आंसुओ को छुपा
दिल पे पत्थर रख
हालातो से समझौता कर
तब हमने भी कह दिया जाओ......
जब ना रही उम्मीद
बिखरे रिश्ते को समेटने की
हालातो से बेतहाश होने लगी
तब हमने भी कह दिया कि जाओ......
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मेरे हालात तो देख
कुछ सोचा भी नहीं जा रहा
तुझे जाने को भी कहा
और रोका भी नहीं जा रहा-
तजुर्बे उम्र से नहीं...बल्कि हालातों से होते हैं... जीतने खराब हालातों से आप लड़ेंगे, कामयाबी उतनी ही बड़ी होगी ।
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रुकी रुकी सी है जिंदगी
कोई अपना छूट सा गया है,
उन हसीन ख्वाबों का
कुछ हिस्सा टूट सा गया है।-
मेहंदी पीसी जाती रही,निखारने के इरादे से,
बिटिया की ये हालत मुझसे नहीं देखी जाती।-
न दिन ही समझ आये न रात का पता
यह माजरा क्या है तू ही बता ऐ खुदा
अमीर-ए-शहर काे हासिल सब रास्त
कि अहल-ए-मुफलिस है भूखा साेया
अहल-ए-इंसानियत है यहाँ फ़िक्रजदा
कि कमजर्फाें काे है मजहब का नशा
मुआ'फ कर सारे गुनाह तू ऐ रब्बे रहीम
कि अब इस वबा की काेई ताे बता दवा-