देखा है,
गिलोय की बेल को,
अमरूद के पेड़ पे चढ़ते हुए।
हवा, धूप पा कर,
कुछ ही दिनों में वृहत् फैलाव लेते हुए।
किसी ने,
गिलोय की बेल को काट दिया जड़ से,
बचाना था शायद वो पेड़ उसे।
मगर बेल को अब जीने की तमन्ना थी,
चाह हुई उस पेड़ से लिपटे रहना ही,
उसने ऊपर से ही अपनी नई जड़ें निकाली,
और जमीन की और बढ़ा दी,
जीने की ख्वाहिश लिए,
एक नई उम्मीद के साथ।
-