ज़िद्द थी तुम्हें पाने की जो
हद्द है आज कहाँ गयी वो-
कैसे रखूं मैं तेरी यादों को हद्द में
ये दिनपरदिन बेहद होती जा रही हैं
जितना समेटती हूं मैं इनको
ये उतनी ही तेज़ी से बढ़ती जा रही हैं
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हवाओं सा लहज़ा है उसका, हर कली को वो जानता है
एक ऐसा लड़का है जो मुझे हद्द से ज़्यादा पहचानता है-
नींव मैंने रख ही दी है, अब दीवारें तू खड़ी कर दे,
मैनें तो हदें लांघ दी, अब तू मेरे पावं तले ज़मीं कर दे।-
ना किसी घर, गली-मौहल्ले, दिल, ना ही ख़यालात में रहता हूँ,
हाँ मुझे अपनी हद्द मालूम है, मैं सदा औक़ात में रहता हूँ।-
सिर नंगा देख चुन्नी से ढक दे
अपने ख्वाबों में मुझे हर रोज़ वक्त दे
पल भर भी उसकी आँखों से ओझल ना हो पाऊँ मैं
वो मुझे इतना चाहे कि दीवानगी की हद्द कर दे |-
कितनी चाहत है उससे कैसे समझाए हम
मोहब्बत है कितनी कैसे बताए हम
जनता सब है वो हमारे इश्क़ की हद्द को
उसे उसकी इश्क़ की हद्द बताए तो बताए कैसे।-
चराग़ अंधेरों मे अच्छे लगते है
हम इंसान हमारी हद्द मे अच्छे लगते है-
सबको खुश रखने को
किसी भी हद्द तक जाता है,
ना जाने कितना टूटा है वो इंसान
दूसरो को जोड़ने के लिए।-