चेहरों की हँसी कहा है
दिखती थी जो वो मुश्कान कहा है
खेलते थे जो कभी बच्चे
वो मदमस्त, बेफिक्र शाम कहा है
रुक गई है जिंदगी एक स्टेशन पे आ के
आगे पटरी के निशान कहा है
बंद है दरवाजे खिड़की भी ना खुले
घूमते थे जो मोहल्ले में वो बचपन कहा है
भीड़ में चलते थे शोर मचा के
पूछे वो राह अब इंसान कहा है
लड़ते थे जो कभी झूले के लिए
बोले वो झूला मेरे बच्चे कहा है
वो स्कूल वो लड़ाई वो बेंच के झगड़े
सवाल करता है स्कूल मेरी संतान कहा है
खो दिया है उनको इस महामारी में कही
पूछे वो मासूम मेरा बचपन कहा है
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