सूखे पत्ते बन, झड़ जाए.... या.... !
नए पत्ते बन, तुम पे, ठहर जाए ।
बता....!
तेरे शाख पे, किस अदा से? नज़र आए ..।।-
जड़ से नहीं सूखे थे पेड़ फिर भी उड़ चुके परिंदे
जनाब सिर्फ मौसम बदले थे मौसम के हिसाब से-
कलम भी जान गाई हे स्वाद जिन्दगी का ,
हर रंग को काली शयाही के रंग लिखती हे ,
जानती हे चार दिनों के हे ये रंग सबके,
आखिर सूख कर तो हर शै काली दिखती है।
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ये मेरा दिल हे ,
इसका रंग लाल नहीं
क्युंकी ,ये इश्क में बेहाल नहीं ,
प्यार से मालामाल नहीं ,
सूखा केसे रंग तूने ,
किया सवाल नहीं ।
उड़ गया वो परिंदा लाल लोटा ना,
सूख पडा है दिल पर टूटा ना,
ईन्तजार मे तेरे अधूरा हो गया।
सूख कर भूरा हो गया ,
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सूखे 🍂पत्तों की तरह मत बनाओ...
अपनी जिंदगी...
नहीं तो दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं..,
जो बटोर कर आग🔥 लगा देंगें...✍🏻-
कभी रंग भरना था कहीं और स्याही का डब्बा था खुल गया,
आज डायरी खुली और सूखा ग़ुलाब कतरा बन उड़ गया ।-
उन्हें लगा हम सूखे पेड़ के पत्ते है
कुछ पल में टूट कर बिखर जाएंगे
तो ज़रा खबर ले लीजिए अच्छे से
सूखे पेड़ के पते
आसमान छूने में देर नहीं लगाती
वो भले ही टूट कर बिखर जाती है
पर अपने हौशले को कभी टूटने नहीं देती
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बिछड़ कर पेड़ों की टहनियों से,
खोकर ख़ुद का अस्तित्व
गिर जाते हैं ये सूखे पत्ते
फ़िरते हैं मारे- मारे....
जैसे भटक गए हो घर से और
बिछावट हो जाते हैं पैरों के नीचे के
कभी चरमराहट से जैसे चीख़ते हैं
तो कभी हवा के झोंको से
लिपटते है पाँव पकड़कर
क्या शोक मनाऊं उन पर???????
या फिर भर जाऊँ हर्षोल्लास से
नव पल्लव के आने पर
जो टहनियों से उभरकर
देख रहे आँखें खोलकर
पर संवेदनाएं जुड़ी हैं सूखे पत्तों से
और आशायें नये किसलय से
शायद यही जीवन है....
यही नियति है........-
मिला करते थे सूखे फूल किताबों में
जब मुकर्रर नही था
बस एक दिन फूलों के नाम
ज़माने में
Anupama jha
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