कड़ी धूप में हैं बिल्कुल, ठंडी छाँव की तरह
शहर सी ये ज़िंदगी, हैं वालिद गाँव की तरह-
जिंदगी का सुकून हो तुम, साँसों की लय-ताल हो,
जीने की वजह तुमसे, वो ही तो तुम सुर-ताल हो!
अंतर्मन की पुकार हो, जो अंतस की आवाज हो,
आँखों की दिव्यज्योति, जो रौशन मेरा संसार हो!
कनेर की कशिश हैं जो, वो तन मन की बहक हो,
महसूस करता पल-पल, वो ही तो तुम महक हो!
दिल के आँगन बसती है जो, वो सपनोँ का घर हो,
खुशियां जिस के नाम है, वो मेरा तुम त्यौहार हो!
रग-रग में बसी हो मेरे, तुम वो सनसनाहट रक्त हो,
खामोशी के शब्दार्थ जो, वो अनकहा अव्यक्त हो!
हर शब्द में तेरा नाम जो, वही तो मेरी पहचान हो,
होगें जिसमें हमारे किस्से, वो मुकम्मल किताब हो!
जिंदगी की हर सुबह हो, चाहे वो कोई हर साँझ हो,
हिचकी आखरी जब भी हो, वो "राज" तेरे नाम हो! _राज सोनी-
गिनता रहा दिन
जाने आखरी बार सुकून से कब सोया था मैं
फ़िर याद आई माँ की वो थप्पड़
जिसे खा कर ख़ूब चैन से सोया था मैं-
वैसे तो सबसे बातें करना
मुझे अच्छा लगता है
मगर सुकून,
तुमसे बातें करके ही मिलता है-
अरसों बाद बड़े आनंद का एहसास हुआ
इतनी गहरी नींद आई कि
जैसे अरसो पहले मैं सोया करता था
ना होश रही दिन की ना अंधेरे का अहसास हुआ
आज ऐसी नींद सोया हूँ मैं कि
जैसे मेरे महबूब की बाहों में सोया करता था-
मैं कभी नहीं भटकी
सुकून अच्छी नींद लाता है
सुकून का गैर हाज़िर होना
मेरे खयालों की हथेलियों को
स्याही से भर जाता है...
और मैं रात के लिहाफ में
खुद को खोलकर
'तुम' को बुनती हूं
क़ज़ा आने तक.-