किसी को खोने का गम है दिल में,
तो किसी की यादों के सहारे जीने की उम्मीद,
वो नहीं आयेंगे लौटकर कभी ,
आज़ दिल को ये तस्सली सी हुई है।
(~शेष अनुशीर्षक में ~)
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कुछ गुम थीं खुशियाँ कुछ खो सी गई
दुखों के साथ जीने की आदत अब हो सी गई ।
(शेष अनुशीर्षक में )
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ख़ुद के जख्मों पर ख़ुद ही मलहम लगाना सीखा है,
दर्द हज़ार होने के बावजूद मुस्कुराना सीखा है,
और कुछ ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता अब दर्द गहरे होने के बाद भी ,
उम्र से पहले ही मैंने कई असह्य दर्द को सहना सीखा है !!
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चलो ,अंधेरे में हम उम्मीद की किरण ढूँढतें है,
खुद में खुश रहने की नई वजह ढूँढतें है।
कोई व्यक्ति दुख से अंछुआ नहीं ,कोई जगह गम से परे नहीं ,
हम गम में गुम हुई खुशियों के ताले की चाभी ढूँढतें है।
जो बसा है दिल में हमारे उस खुदा की तरह ,
हम उसकी गलियों में जाने की कोई वजह ढूँढतें है।
बहुत दिनों से कैद कर रखा खुद को इस अंधेरी कोठरी में तुमने,
चलो, इससे बाहर निकल लिखने की एक वजह ढूँढतें है।
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दिल में आज़ भी सिर्फ तुम्हारी सूरत बसा रखा है, मैंने
तुम आओ या ना आओ,
तुम्हारी यादों को कहीं महफूज़ समेट रखा है, मैंने ।।
(शेष अनुशीर्षक में)
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मुझे भी घर से दूर जाने दो ,
मुझे भी खुद को समझने दो ,
यूं ना कैद करो मुझे
कुछ कदम अकेले ही चलने दो,
मै बेटी हूँ मुझे बेटी ही रहने दो।।
~(Captioned)~
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कभी घर से निकल,
मोह में निराश हो जाऊँगी
कभी रास्ते भूल,कहीं बैठ जाऊँगी,
कभी ठोकरें खाऊँगी,ज़ख्मी हो जाऊँगी,
कभी घातक शब्दों को
सुनकर टूट जाऊँगी,
फिर भी मैं मुसाफ़िर हूँ,
चलते ही जाऊँगी
कभी याद सताएगी अपनों की,
कभी गैरों में खो जाऊँगी,
कभी हिम्मत रख आगे की ओर बढ़ते ही जाऊँगी,
कभी वक्त की मार सह चूर चूर हो जाऊँगी,
फिर भी मै मुसाफ़िर हूं मै चलते ही जाऊँगी,
कभी जीत का जश्न मनाऊँगी,
कभी हार भी जाऊँगी,
फिर भी डटकर मेहनत करूँगी,
कर्म पथ पर चलते ही जाऊँगी,
और मंज़िल तक पहुँच भी जाऊँगी,
मैं मुसाफ़िर हूँ , चलते ही जाऊँगी,
मै मुसाफ़िर हूं, चलते ही जाऊँगी।।-
जब भी गुज़रा तेरी गालियों से अपने आशिक़ी
का शोर तेरे दिल में मचा जाऊँगा ,
तेरी गालियों से कुछ यूँ चला जाऊँगा।
यूँ दिल में कब तक छुपा के रखोगी मुझे मैं "आशिक़" हूँ
तुम्हारी नज़्मों में सदा ही लिखा जाऊँगा,
तेरी गलियों से कुछ यूँ चला जाऊँगा ।
तुम कहा करती हो मुझे दूर चले जाने को मैं "खुद" को तुम्हारे हवाले
कर तुम से दूर भी चला जाऊँगा ,
तेरी गलियों से कुछ यूँ चला जाऊँगा ।
मैंने नहीं देखा खुदा को कभी इन आँखों से इक तेरे सिवा
मन-ए-मंदिर में तेरी सूरत बसा कहीं दूर चला जाऊँगा ,
तेरी गालियों से कुछ यूँ चला जाऊँगा ।
बेशक, ताउम्र साथ नहीं लिखा तुम्हारा मेरी हथेली की लकीरों में,
पर , जब भी याद आयेंगी तुमको मेरी तुम्हारे होंठों की "मुस्कान"
मैं सदा ही बन जाऊँगा ,
तेरी गलियों से कुछ यूँ चला जाऊँगा।-
खोने पाने की कश्मकश में कई बार हार जातें है,
कुछ अल्फाज़ दिल में दफ्न रह जातें हैं,
कहना बहुत कुछ चाहते हैं पर कुछ कह नहीं पाते हैं ,
कुछ अल्फाज़ दिल में दफ्न रह जाते हैं।
कल्पित दुनियाँ जब दिल में बस जाती हैं,
चारों ओर खुशियाँ हीं खुशियाँ नज़र आती हैं
तब हम वास्तविकता से अंजान बन जातें हैं,
कुछ अल्फाज़ दिल में दफ्न रह जातें हैं।
किसी साएँ की तलाश में हम खुद को भूल जाते हैं
फिर सिसकियों की आहटों को यूँ तकिए तले दबाते है
कुछ अल्फाज़ दिल में दफ्न रह जातें हैं।
ख्वाबों की दुनियाँ बड़े प्रेम से सजाते हैं उनमें से कई टूट कर
बिखर जाते हैं ख़्वाब हकीकत से बहुत कम ही मिल पातें
कुछ अल्फाज़ दिल में दफ्न रह जाते हैं।।— % &-