Jitna Mushkil Safar Utni Hi Khubsurat Manzil❤
-
मेरी ख़ामोशी से मेरा एक सवाल ऐसा है
आँखों में आँसू हैं नहीं, ये मलाल ऐसा है
कोई फ़ुर्क़त पल रही दिल में क़ुर्बत बनी
तन्हाई से पूछा? उसका भी हाल ऐसा है
मेरा शहर ए सहरा, दरिया से गहरा हुआ
मैं साहिल प्यासा रहा, ये कमाल ऐसा है
बे-वज़ूद इश्क़ कामिल होगा भला कैसे
धड़कनों ने बुना मकड़ी सा जाल ऐसा है
कोई तीरगी सी बह रही है नसों में मिरी
अब कालिख़ का भी देखो जमाल ऐसा है
रौनकें घर में नज़र आती किसी 'लौ' सी
और जलता हुआ भीतर 'बवाल' ऐसा है-
मुझे रास आए, महफ़िल में वो बात नहीं है
ये ज़िंदगी ख़ाक सी जो तू मेरे साथ नहीं है
मैं दिल जला हूँ, अपनों के फ़रेब देख- देख
यूँ दिल छूने भर की गैरों में औक़ात नहीं है
ऊँच- नीच, जात- पात महामारियाँ है बुरी
साफ़ मन से बढ़के दूजी कोई जात नहीं है
रात ज़ालिम है ख़ामोश मेरा सब्र देख कर
वरना मुझे डराए अँधेरों में औक़ात नहीं है
यूँ तो रोज़ सफ़र तय करता हूँ ज़िंदगी का
मग़र कुछ हासिल करूँ वे जज़्बात नहीं है
एक बवाल है, जो सीने में पल रहा है मेरे
वरना थामे मुझे, काँधे पर वो हाथ नहीं है-
सफ़र
हम ना लौट आने को चले थे
ना थी दोस्ती रास्तों से
ना थी मंज़िलों की चाहत
उम्मीद ये की
सफ़र ख़ूबसूरत हो
ज़िंदगी जीने का
ये भी तो एक नज़रिया था
जो मिले बाँट दिए
हमने यादों के तोहफ़े
बाँटते ख़ुशियाँ
छुपाते ग़म अपने
जो मिला साथ तो
साथ
नहीं तो बस अकेले चले थे
कोई उम्मीद क्यों करे
हमारे लौट आने की
हम बस यों अकेले चले थे
हम ना लौट आने को चले थे
ललित-
मेरे मरने का ग़म मुझे होता नहीं है
क्या करें ये मुआ दिल रोता नहीं है
रोज ही कुरेदता हूँ मैं ज़ख्म अपने
सिल दूँ तो साला दर्द होता नहीं है
दूर कहीं, फ़िर कोई, रूह तड़पी है
यूँ ही, ये दिल सबब खोता नहीं है
रोशनी ये मेरे घर मेहमान क्या हुई
अँधेरों का दर्द कोई पिरोता नहीं है
आलम ऐसा था कि बारिश हो गई
सड़कों के दाग़, कोई धोता नहीं है
हँस हँस के बहा देता हूँ आँसू सारे
जानकर पागल, कोई होता नहीं है
वो कहते हैं ये तसव्वुर है जानलेवा
कह दो, प्रेम में ये सब होता नहीं है
मिरी उल्फ़त का शिकारी, कौन वो
कांधे जो सर रखकर सोता नहीं है
सुनाता हूँ शे'र मैं, कलेजा चीर कर
कहते हैं सुख़नवर क्यूँ रोता नहीं है
'बवाल है' कहकर लौट जाते हैं सब
महफ़िल में सगा कोई होता नहीं है-
ख्वाहिशें कहाँ कम सी है
जितनी भी है, ग़म सी है
रग़बत हम पर ऐसी छाई
याद भी उसकी रम सी है
है वो मशग़ूल अज़ल तक
तग़ाफ़ुल लेती दम सी है
तीश्नगी-ए-उम्मीद ऐसी कि
हँसती आँखें भी नम सी है
अज़िय्यत ए हिज्र ए सब्र
देती बुलावा यम सी है
नदामत नहीं रखता कोई
'बवाल'गिरी ये बम सी है-
मैं भी चाहता हूँ भीड़ और वाह-वाही को उठते हाथ
जनाजे में मिरे 'राम नाम' नहीं, कुछ शे'र कहे जाएं!!-
साथी
तुम साथ दोगे मेरा मेरे आख़री सफ़र तक
या बीच मझ़धार में छोड़ कर चले जाओगे !-