मशालें भी जलीं हैं और कायम हैं मिसालें भी
बस अब शहीदों के घर
इक दिया भरसक जलते रहना
चाहिए!
प्रीति
#365 :४५-
शहीदों के अश्क बिकने चाहिए ऊँचे दामों में,
ज़रा उनके बलिदान का मोल सबको पता
तो चले
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देश को जिसने हमें सोंपकर बदले में सिर्फ मौत पायी |
कैसे न करें उन्हैं हम याद ,मौका परस्त कहलायेंगे गर आज उनकी याद न आयी |-
जो सजाए अपने खून से भारत माता की माँग उसे शहीद कहतें हैं,जो बहाए अपने खून की नदियां, उसे शहीद कहतें हैं,शहीद मरते नहीं अमर हो जाते हैं,....... जय जय जय शहीदों की
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है निगहबां आंखें तुझपे ऐ_वतन मेरी
क्या खाक मिटायेगा कोई हस्ती तेरी..!!-
बुलाता है हमको, चलो रास्ता,
हम लिखेंगे मोहब्बत की एक दास्तां,
देश की आन में एक हो जाएं अब,
दिल से दिल तक जुड़ा आपसे वास्ता!
ज़ुल्म दहशत की कोई कहानी न हो,
एक हों हम सभी बदगुमानी न हो,
हिन्द का नूर दुनिया में कायम रहे,
जगमगाती रहे मुल्क की कहकशां.!
हम लिखेंगे...
कोई मज़हब की दिल में न दीवार हो,
नाज़ अपने वतन पे हमें यार हो,
ये शहीदों की मिट्टी है सजदा करो,
बाग दिलकश बने हम बनें बागवां.!
हम लिखेंगे...
सिद्धार्थ मिश्र-
सारी दुनिया देख रही है,
पुलवामा की बर्बरता को,
तिरंगे का पैराहन पेहने ,
हिम्मत के उन टुकड़ो को,
दर्द से चीख रही है माँ,
खोकर अपनी सुद्बुध को,
कैसे भी इन्साफ़ दिला दो,
माँ के अमर शहीदों को,
काँटो से ज़िस्मों को छीलो,
धड़ से उड़ा दो गरदन को,
दहकती सी एक आग में डालो,
तोड़ कर इनकी टाँगो को,
ज़िन्दा लाकर तेज़ाब में डालो,
दुश्मन के उन पिल्लों को,
सारी दुनिया देख रही है,
पुलवामा की बर्बरता को,
तिरंगे का पैराहन पेहने ,
हिम्मत के उन टुकड़ो को,
कश्मीर के पुलवामा में शहीद हुए जवानों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
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स्वतंत्र बाबा कहीन:-
क्रांति और भ्रांति दो अलग अलग चीजें हैं । क्रांति त्याग एवं शौर्य से जीवंत की जाती है,जबकि भ्रांति को ढोंग से प्रमाणित किया जाता है । इस बात को भारतीय इतिहास से भली भांति समझा जा सकता है । वह इतिहास जहां नपुंसकों को राष्ट्र रत्न बताया गया हैं,एवं सभी तिथियां उनके विभत्स कारनामें से जोड़ दी गयी........हैरान हो जाता हूं राष्ट्र में वीरों का तिरस्कार देखके.....आप ही सोचीये जिस राष्ट्र ने शहीदों का सम्मान नहीं किया वो कैसे सुखी रह सकता है.............नतीजा तो यही होता जो हम भुगत रहे हैं । सभी सार्वजनिक मंचों से मात्र झूठ एवं पाखंड ही कहे और किये जाते हैं ।...........सच में दुखद
सिद्धार्थ मिश्र-
बदनीयत,बेईमान,बेरहम...
कितने तमगे मिलें हैं तुम्हें इस सफर में
अब इसकी कोई इन्तेहाँ तो रखो
इंसानियत नाउम्मीद है तुमसे... पर
इसका कोई निशां तो रखो😢-
जब चढ रहा था करोडों का प्यार परवान, उसी दिन ले ली कुछ आतंकीयों ने हमारे फौजियों की जान। उनमें से भी कुछ ने शायद प्यार का तोहफा या इज़हार ए मोहब्बत भेजा होगा, क्या खबर थी दोबारा मिलना भी हो पायेगा यारों और परिवार से।
गुज़ारिश है यह सरकार से, खाली न जाये ये बलिदान, तय करें ये कि खुन के आंसू रोए पाकिस्तान।-