मैं काँच सी उम्मीद नहीं जो गिर कर बिखर जाऊँ,
मैं मोम नहीं जो तनिक लौ से पिघल जाऊँ,
अरे मैं वो होंसला हूँ जो बिखर कर भी ख़ाक नहीं होता,
मैं तो सूरज हूँ जो दिन-रात जल कर भी राख नहीं होता।-
एक ख़्वाबों की बस्ती हों
एक ख़्वाबों की बस्ती हों
उड़ते हो सपने तितली बन
गुनगुनाते भँवरो सी मस्ती हो
छुटे ना किसी हाथ से किताब
ख़्वाब देखना हवा सी सस्ती हो
थामे दामन मुस्कराहट का
खुशियाँ फ़ूलों संग खिलती हो,
हरा चोला पहने इतराती धानी
जैसे वसुधा आलिंगन से संवरती हो,
हो चमकते सूरज सा हौंसला
कठिन चुनौतियों के सागर में
गोते खाती उम्मीदों की कश्ती हो
पूरे हो सारे ख्वाब , परीलोक नहीं
एक ख़्वाबों की बस्ती हों।
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मैंने तय किया है।
ये वक़्त की लहरे लाख कोशिश कर लें
मेरे किस्मत की कश्ती वहीं बहेगी जहाँ
मुकद्दर मैंने तय किया है।
ये दिल-ओ-दिमाग की आँधी गिरा जाती
सपनों के शामियाने को अब ख़्वाहिश मैंने
उड़ना तय किया है।
ये मज़बूरीयाँ अक्सर कलाई पर निशान छोड़
जाती हैं, चूडिय़ां पसंद नहीं, मुक्केबाजी सीखना
मैंने तय किया है।
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चलती उंगलियों में ठहरी सिहरन,
बुन देती कुछ संजीदा सवाल।
उलझे रह जाते भ्रम के कांटों में,
कुछ बेसब्र रेशमी ख़ामोश ज़वाब।
परत-दर-परत खोल देती जवाब, बस एक खिंचाव।
लेकिन बुरा होता है धागे का बीच में टूट जाना।
चुभते वो धागे जैसे चुभते कुछ,
बेदर्द, टूटे , अनकहे ख़्वाब ।
जोड़ दूँ क्या एक नया सिरा ? हाँ,
जानती हूँ ! हर वक़्त चुभेगी गाँठ।
लेकिन बेहतर है वो चुभन, शायद रुक
जाए जीवन की जीवन से होती रिसाव!!!
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अगर है कोई अकेला तो जरूरी नहीं टूटा हो दिल,
कुछ लोगों का शौक अकेले रहने का होता है।
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मौन पड़े सिलवटें, बिछौने के
शून्य आत्मा, बिखरे पुर्जें खिलौनें के
वो ढूँढती, समेटती, उठाती, जोड़ती
फ़िर दस्तक, जैसे संकेत बिखरने के।
भींगी आँसू, दुःख, हवस, पसीने में
तर-ब-तर वो नहीं, इंसानियत कोने में
और चल दिए निरंकुश मुस्कुराते होंठ
पतलून चढ़ा, चुका क़ीमत पैसों में।
तिरस्कृत कुलटा, वैश्या, कोठे वाली
कमी नहीं की समाज ने नामों में
फ़िर क्यों छोड़ दिया नोचने वालों को
जलाओं हैवान को भी उपनामों में।
सुना हैं स्त्री आबरू, संस्कार, सम्मान
बाँध कर निकलती अपनी साड़ी में
थोड़ा लिहाज़, शर्म भी सिल दो, ताकि
ना खुले बटन, ढीले पड़े आस्तीनों में।
- Abhilasha 🖋
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चल बांटते है।
इंसान, ईश्वर तो बट गए।
अब ये जहान बांटते है।
चल पर्वत तेरा , आसमान मेरा ।
हवा तेरी, बूंद मेरा ।
दिन तेरा, चांद मेरा ।
अब धरती बची है,
चल उसका सीना फारते है।
चल बांटते है
हवा मेरी है, अब तुम साँस न लेना।
बूंद तो मेरी है, अब तुम प्यासे रहना।
देखो सब कुछ तो बाँट लिया।
विष का क्या करना है, ज़लज़ला,
तूफ़ाँ किसके हिस्से जाएगा।
मुर्ख इंसा मौत को भूल गया,
एक दिन ख़ाक-ए - शरीर
तेरा मिट्टी में मिल जाएगा।
बांटी हुई चीज़ों को क्या कब्र में भी ले जाएगा।
-Abhilasha 🖋
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Cupboard
This room is mine
looked at after a long time
the sun is on window
with fragrance of fire,
the beautiful chandelier
and the wall full of frame
with a little engraved name
You are here my teddy
this is given by my daddy
everything was in my cupboard
things was not lost & memory too
but something is really missing
definitely it was me and only me
lock down found me somewhere
in my life's clutter cupboard
now I am with me and a bling
Oh are you asking about this?
This is my beautiful earning.
-Abhilasha 🖋
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ऐ ख़ुदा इतनी रज़ा हैं, क़बूल हो माँगा जो दुआ में।
इस ईद-अल-अज़हा, रोशन हो हर आँगन चाँद से।
इबादत में डूबे हो दिल , खुश रहें अमन के छाँव में।
कोई शख़्स भूखा ना रहें , निवाले हो हर थाल में।
हर अनाथ को गोद मिले, पनपे वालिद के पनाह में।
दिखावटी झूठी मुस्कान नहीं, हँसी हो हर मुस्कान में।
ना कोई भेद-भाव, छोटा-बड़ा, सब एक हो ज़वाब में।
मोहब्बत से सरोबार चाँदनी, चमकती रहें आसमान में।
इंसानियत की इबादत हो, इंसान जिंदा रहें हर इंसान में।
ख़त्म हो जाए महामारी, अमलन मुबारक ईद हो दिल में।-
जो सीखता है वह प्रगतिशील रहता है,
और जो सिखाता है वह प्रयत्नशील रहता है।
एक संदेश मानसी के नाम।
मुस्कुराते रहिए। 😊
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