रक्त की बूंदो को कपड़ो पर लगा देख
जो कल तक शिकायत करते थे।
उसी लहू को चादर पर न पाकर,
वो आज मेरे चरित्र पर दाग़ लगाते है।
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कभी खुशियां कभी गम की, मुकम्मल ये कहानी है
बड़ी छोटी सी मेरे दोस्त, मोहब्बत की जवानी है
सुना है ज़माने में, हैं कुछ अश्कों के सौदागर
समझते हैं जिसे मोती, महज़ आंखों का पानी है
निगाहों में बसा इक शख्स, है कुछ यूं उतर रहा
लहू आंखों से बहता है, ये इश्क़ की निशानी है
बहुत बेचैन रहता है, अपने किरदार में परिंदा
मौत आज़ाद करती है, क़फ़स में जिंदगानी है
जिसे तुम ढूंढ़ते फिरते हो, कहीं नहीं है ज़माने में
तुम्हे अपने ही हाथों से अपनी तकदीर बनानी है
सुकूं मिल जाए दिल को, कुछ ऐसा कर गुज़र "निहार"
तुझे ये दास्तां अपनी, अभी बहुतों को सुनानी है
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आज दर्द को आंखों से बह जाने दो
देखो पास न आओ मुझे डूब जाने दो
बहुत रोका मैंने खुद को तन्हाई में जाने से
पर किस्मत न बदल पाई में खुद की ही
आज मुझे मेरे दर्द में समाने तो दो
आज मेरी कब्र बस यही तुम बनाने दो-
तुम प्यार से अपना हाथ बड़ाओ
मुझे पारियों के देश लेे जाओ
नए नए सपने मुझे तुम दिखाओ
काश! की तुम मुझे अपनाओ
देखो दो कदम बढ़ाकर पीछे न हट जाओ
डर को अपने तुम अब भगाओ
दिल को सही गलत तो समझाओ-
लहू भर गया यार पूरे बदन में
कोई ज़ख़्म ज़्यादा ही गहरा है दिल में।।-
जो कहता था, उसका अंग-अंग मेरा है
आज उसके हाथ में रंग नहीं लहू मेरा है
-© सचिन यादव-
ये जो गर्म लहू बहा है ज़मी पर, इसे सूखने में ज़माने लगेंगे
मगर देश के कुछ गद्दार मिलकर फिर आतंकियों को बचाने लगेंगे..-
लहू से भी जलन बुझी नहीं थी उस वक्त,
कमाल रूतबे का,वह बज्म मे मुहब्बत का बद्र हैं!-
रुके रहेंगे, कहोगे जब तक
मगर ये दर्द तुम, सहोगे कब तक?
हम तो हैं आँसू, हमें है बहना
लहू तुम सड़कों में, बहोगे कब तक?-
गुलाल नहीं तो मेरे लहू से भर दे
या ख़ुदा जग में मगर, रंगीनियां भर दे
- © सचिन यादव-