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ना किसी के होठों की तबस्सुम होना चाहती हूँ,
ना इश्क में किसी के लिए फना होना चाहती हूँ!
मैं खुद से एक बार इश्क करना चाहती हूँ..,
हाँ,मैं हर जन्म में लड़की होना चाहती हूँ..!!-
वो मुँह फुलाकर कर बैठ जाती है......,
एक सुलझी-सी लड़की,
जिद्द कहाँ करती है।
परिपक्वता की उम्र से पहले अपनी ,
अड़ियल उम्र में परिपक्व हो जाती है।।
चुल्हा-चौकी हो,या हो विचार सब में,
अपना बचपन भूलकर ,
जिम्मेदार बन जाती है।
गुड्डा-गुड्डी,और खिलौनें इन सब में
कहाँ उसका बचपन बीता है,
"पापा की परी" नाम से ,
अक्सर मैं हँस देती हूँ।।
वो अक्सर मुँह फुलाकर बैठ जाती है,
क्योंकि एक सुलझी-सी लड़की ,
जिद्द कहाँ कर पाती है।।
Vandana jangir
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लड़की पूछ रही है दरकार फूलों से
महकेगा दुनिया का बाज़ार फूलों से
लोग तो ख़ुद कभी नहीं महके यहाँ
क्या पूछेंगे वो अब आज़ार फूलों से
रफ़्ता-रफ़्ता अना में तब्दील हो गए
कोई नहीं करता यहाँ प्यार फूलों से
दहक़ाँ हैं कहाँ जो उगाते थे तब तुम्हें
महका दिया था सारा संसार फूलों से
चुन सको तो चुन लो इन्हें "आरिफ़"
होता है ख़ुशियों भरा घर बार फूलों से
"कोरा काग़ज़" नहीं है ज़िन्दगी इनकी
करते हैं सब प्यार का इज़हार फूलों से-
"लड़की हुई है"
सुनकर जब लोगों ने बातें बनाना शुरू किया
तब वही एक शख्स पूरे अस्पताल में मिठाई बांट रहा था 💕-
हर घर में होनी चाहिए एक खिड़की
जिससे लड़कियां देख सकें चांद को
और बता सकें अपने मन की उलझनें।
देख सकें गली में खड़ी साइकिल को
और महसूस कर पाएं बढ़ती धड़कनें।
बता सकें इशारों से आज
शाम को मिलने का समय।
जिससे इंतज़ार में
काम छोड़ छोड़ कर झांक सकें।
जिससे वो देख सकें चांद को
और कर सकें साथ निभाने का शुक्रिया।
हर घर में होनी चाहिए एक खिड़की
जहां से आते जाते सूरज
रोज़ खटखटाता हुआ जाए।
जहां से ढलती उम्र में बस
महसूस की जा सके घर में आती हवा।
हर घर में होनी चाहिए एक खिड़की
जिससे लड़कियां सांस ले सकें।
- सुप्रिया मिश्रा-
इस पॉलीथीन में
कितने ethylene molecules होंगे
ये सोचते हुए
एक लड़की
काली polythene
लेने से मना कर देती है,
और एक भूरे कागज़ के ठोंगे को
हाथ में दबाए,
ये सोचती हुए चल देती है
कि वो आज
पति से
क्या बहाना करेगी।
- सुप्रिया मिश्रा-
खूब पढ़ने का
शौक़ पाली हुई लड़की को
पढ़ाया नहीं गया
और ब्याह दी गई
किसी गंवार के घर
...
आज भी उसके अंदर लालच है।
किसी के पैसो का नहीं
ना ही सुन्दर कपड़ों का
ना ही किसी आलीशान महल का....
.....
केवल लालच है तो
पढ़ने का...
आज भी
ललचाई निगाहों से देखती है
किताबों को...
बसतों को...
स्कूल जाते बच्चों को...
किसी पढ़ते को....
स्कूल को....
कागज़ कलम को....
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