पुरुषोत्तम कोशलेय भी मैं
परम भक्त आंजनेय भी मैं..
विवश नार सीता भी मैं
पुत्र वियोगी पिता भी मैं ....
भ्राता निष्ठ लक्ष्मण भी मैं
घर भेदी विभीषण भी मैं ....
अवध के मन की शंका भी मैं
लपटों में जलती लंका भी मैं
अहल्या सी अटल शिला भी मैं
हर क्षण घटित रामलीला भी मैं ..-
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा।
देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा।
बंदि चरन कह सहित सनेहा॥
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना।
केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना।
जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥
[ तुलसीदास ]-
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
शब्दकोश में प्रिये, और भी
बहुत गालियां मिल जाएंगी
जो चाहे सो कहो, मगर तुम
मेरी उमर की डोर गहो तुम!
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
वर्ष हजारों हुए राम के , अब तक शेव नहीं आई है!
कृष्णचंद्र की किसी मूर्ति में, तुमने मूंछ कहीं पाई है?
वर्ष चौहत्तर के होकर भी, नेहरू कल तक तने हुए थे,
साठ साल के लालबहादुर, देखा गुटका बने हुए थे।
मैं तो इन सबसे छोटा हूँ, क्यों मुझको बूढ़ा बतलातीं?
तुम करतीं परिहास, मगर मेरी छाती तो बैठी जाती।-
माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा
कीजे सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख पराम अनूपा
सुन बचन सुजाना, रोदन ठाना, होई बालक सुरभूपा
यह चरित जे गावहि, हरिपद पावहि, तेहि न परहिं भवकूपा
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!! राम गीत !!
कोर्ट तक घसीटे गए और हर चुनाव में भूने गए।
राम टाट में ही पड़े रहे और कई शासन चुने गए।
(अनुशीर्षक में पूरा पढ़े)
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'होली उत्सव'
होली आयी रे कन्हाई
रंग छलके सुना दे ज़रा बाँसुरी
छुटे ना रंग ऐसी रंग दे चुनरिया
धोबनिया धोये चाहे सारी उमरिया
मोहे भाये ना हरजाई
रंग हलके सुना दे ज़रा बाँसुरी-
मैं राम का अभिमान हूं,
तो रावण का अहंकार भी मैं...
मैं बुद्ध की शांति हूं,
तो ख्वाहिशों का औरंगजेब भी मैं...-
जब समर ही है निर्णय तो मैं प्राण लेके आया हूँ
सहस्त्रों से लड़ने बस एक बाण लेके आया हूँ।।-
संसार में आते ही
मुखरित हुई थी सबसे पहले वाणी ही
कितना आश्चर्य, कितनी पीड़ा, कितना संशय,
कितनी छ्टपटाहट और बेचैनी से हमने रो रोकर कहा
“कहाँ..कहाँ...कहाँ..”
काश, गर्भनाल से कटने के बाद
उच्चरित होता तुम्हारा नाम
फिर हो जाता यह सफर कितना आसान
भवसागर में तैरते, उपलाते
रामसेतु के पत्थर की तरह
पार होते, औरों को भी कराते
हँसते हुए आते, हँसते हुए जाते
डाली से टूटे किसी पत्ते की तरह
फिर कोई पीड़ा न होती
हो जाता बराबर टूटना और जुड़ना तब
ख़ैर,
देर नहीं हुई है अब भी
जाते वक्त कम से कम
निकले मुख से तेरा नाम
ऐसा ही वर दो हमको
हे राम !-