इश्क़ था कई सालों का, हफ़्ते में चला गया
वो मायके चली गयी, मैं सदमे में चला गया-
बेटियाँ
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एक कदम में लाँघ लेती है
मायके से ससुराल का सफ़र
विराट होने की जरूरत नही
एक कदम में नाप लेती है
दुनियाँ की दूरियाँ-
...औरत , मैट्रो रेल और मायका।
मेट्रो में चढ़ते ही वे कोशिश करती हैं
अपने हिस्से की सीट से लिपट जाने की
जैसे रात भर की मुरझाई कोंपलें
सुबह की धूप से लिपटकर
सोख लेना चाहती हैं अपने हिस्से की सब धूप...
संभवतः ये समय उन्हें मायके की याद दिलाता है
जहां उन्हें ज़रूरत बे जरूरत....
जगाया न जायेगा,
ससुराल के घर की तरह कोई पानी ...
खाना....चाय के लिए
आवाज़ न लगायेगा ...
न ही आफिस के सहकर्मियों की बेहूदा हंसी ठिठोली का
हिस्सा होना होगा...
और न ही बास की किट किट ...
वे भी सुकून से होंगी गंतव्य आने तक ...
अतः वे पूरी कर लेना चाहती हैं
बाक़ी बची अपनी सुकून की नींद भी...
घर से ऑफिस
...और ऑफिस से घर तक के मैट्रो रेल के सफ़र की दूरी में...
वे जी लेती हैं मायके में गुज़रे चंद सुकून के पल ...दोबारा...
मेट्रो... उन्हें मायका लगती है।।-
एक ही शामत
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रूठी पत्नी चली मायके
बोली-"भोगो तुम सुराज।
टन-भर बस काले करो पन्ने
निकम्मों के सरताज़,
तरह-तरह की ख़बर चली है
पर तुमको तो भनक नहीं,
कविता-कविता और कविता
तुम्हारी तो बस सनक यही
लुच्चे-से तेरे चेले -चपाटे
दिखते गिद्ध और बाज़
मैं चली,लो खाली बर्तन
ख़ूब बजाओ साज़।"
पतियों की बस एक ही शामत
पत्नी हो नाराज़
आ गये नमकीन-से आँसू
काटे बिना ही प्याज़
मैनें कहा-"पुष्प-गन्धे!न जाओ,
मैं साँसें कैसे लूँगा
अपनी हर रचना अव्वल
किससे मैं कहूँगा!
अरे! आम तज दूँ, पपीता तज दूँ
तुम कहो तो कविता तज दूँ,
मुझमें दिखे तुम्हें जो भी बीमारी
करवाऊँ सब का इलाज़
भीगी बिल्ली हुआ"शेर रचयिता"
तुम्हारे डर से आज...
(पूरी रचना कैप्शन में😊)-
कुछ स्त्रियों के मायके वाले उनका घर बर्बाद करते है
दिन में 8-10 बार फोन करके जीना तबाह करते है।
नहीं समझते इरिटेशन कितना परिवार में होता है
चलती हो पारिवारिक बात तो मनमुटाव भी होता है।
ना जाने क्या हाल चाल दिनभर बतियाया जाता है
बहूँ को जो ही समझाए उसे बुरा बनाया जाता है।
है मोह अगर सच बेटी से तो उसे संस्कार इतने दो
जब हो परिवार मे साथ में फोन लेकर ना हरदम हट जाए।
बात करनी है एक दो बार करे फोन पर चुगली ना बताए
और बात करू ऐसे भाई की तो तुम्हारी ऐसी पत्नी आए
ना परिवार तुम्हारा समझे वो, उसके भाई भी सिखलाए।
और मात पिता जो रहे खलिहर, बेटी का घर अब फूकें ना
इतना जो तमाशा करना हो बेटी को कुवारी उम्र भर रखें।
बेटी को सिखाये अच्छी बात उसके घर में सबसे बात करे
है शादी दो घर का मिलन हर घर की बेटी का सम्मान करें।
बेटी की ससुराल में कितने मनमुटाव का आप हो कारण
समय निकाल़ो सोचो आपकी बहूँ का ये बर्ताव कैसा लगें।
उसके भी मायके वाले अगर ऐसी ही सोच के मिल जाये
तो परिवार आपका चलेगा क्या,रिश्तेदारी सभी भूल जाए।
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जहाँ पर मेरा ये .."दिल"रहता है,
... रहती तो हूँ..मैं..यहाँ..पर... ध्यान मुझे
वहीं का रहता है...इतना प्यार तो...
...एक लड़की को सिर्फ ...
अपने .."मायके"..से होता है..मुझे जाने दो वहाँ पर...-
तुम ससुराल की बात करती हो
अरे कुछ साल बाद तो मायके की हवा का रुख भी बदल जाता है-
इस बार घर नहीं आ पाऊँगी,
माँ! ये जून मैं ससुराल में बिताऊंगी..
तू अपना ख्याल रखना माँ!
मैं तुझे रोज फोन मिलाऊँगी...
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कुछ खास नहीं बदली है ज़िन्दगी, शादी के बाद।
पहले बाहर से घर आते थे,
अब ससुराल या मायके जाते हैं।।-
ससुराल कितना भी बेहतरीन क्यों न हो
मायके का दुःख कहाँ देख पाती हैं बेटियां।-