मैं मूर्ख हूँ!
सुव्यवस्थित रूप से बँटे
और बाँटे इस संसार में
मुझे कोई सूक्ष्म-सी
विभाजक रेखा भी
दिखलाई क्यों नहीं दी?
मैं अति मूर्ख हूँ!
मैंने पुनः - पुन: अंतर ढूँढे,
फिर विफल हो गई!
अब मैं अपनी मूर्खता
स्वीकार चुकी हूँ!
क्योंकि...
यह मूर्खता भी परमानन्ददायी है!-
बदनामी के डर से औरत जुल्म क्यूं सहे?
भेदभाव का खेल न जाने, हर जगह क क्यूं है चले।
इंसान को पत्थर और पत्थर को भगवान बना,
न जाने इंसान इसे क्यूं पुन्य है कहे?-
ख्वाहिशें बहुत है मगर
किसी से शिकायत नहीं है,
इस दौर में भी परियों को
उड़ने की इजाजत नहीं है.-
गुलाब जामुन ने रसगुल्ले से प्यार का इज़हार कर दिया,
तो रसगुल्ले ने गुलाब जामुन को कहा मैं रौशनी हूँ तू अंधेरा, जाके ढूँढ ले तू कहीं और बसेरा।
तो गुलाब जामुन ने भी कहा - हम दोनों को बनाने वाला हलवाई है, कहाँ मैं कोमल सा मैदा और तू फटे हुए दूध की मलाई है।-
हर काम समय पर करे
कुछ भी न टाले
अच्छे संस्कारी परिवार की हो
साथ दान-दहेज भी लाई हो
उसके घर वाले
लड़के वालों का करें
ख़ूब मान-सम्मान
सिर्फ विवाह के
समय नहीं ताउम्र
यही हैं कुछ अपेक्षाएँ
क्या करें
कुछ ऐसी ही
हैं हमारी सामाजिक मान्यताएँ
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चमचों की बन गयी सरकार
हीरों को माटी में दबा दिया गया
भेदभाव और दिखावे की नीति कुछ ऐसी बनी
कौवों को भी सफेद रंग पोतकर
हंस बता दिया गया...-
प्रीत न देखे चाकरी , नहीं देखता ठाठ
प्रेम न बूझे बावड़ी प्रेम न बूझे घाट।।
प्रीति
३६५:१-
एक बच्चे के साथ भेदभाव न हो, इस कारण से कई बार मां, दूसरे बच्चे के साथ भेदभाव करती है।
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बेटी की अभिलाषा..?
बेटी की अभिलाषा यही, ना करो संग उसके सौतेला व्यवहार
मिले उसे भी बेटे की तरह भरपूर लाड़ और प्यार
Read my Captions..?-